चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पारिवारिक परिस्थितियाँ
गुलेरी जी का विवाह बीस-इर्वकीस वर्ष की अवस्था में हुरिपुर निवासी कवि
रैणां की सुपुन्नी पद्मावती से हुआ । कहते हैं, उनके पिता ने कांगड़ा के गरली
गाँव में विवाह निश्चित किया था । शादी से कुछ दिन पहले लड़की के पिता का
देहांत हो गया और विवाह रुक गया । पं. शिवराम बेटे की शादी किए बिना
जयपुर नहीं लौटना चाहते थे । उन्होंने तुरंत हरिपुर निवासी कवि रेणां की
से विवाह की बात तय कर ली । चंद्रधर न पहली कन्या से परिचित थे और न
दूसरी से । परंपरा अनुसार उन्होंने अनदेखी लड़की से विवाह किया और उसे अंतिम
संमय तक निष्ठा के साथ निभाया ! पद्मावती सुदर, सुशील भर सुपठित थीं कितु
स्वभाव से कुछ ककंशा थीं । कुछ लोगों ने उनकी कहानी 'बुद्ध, का काँटा' की
वाक्विदग्ध भागवंती को ही पद्मावती सिद्ध करने का प्रयास किया है किंतु यदि
ऐसा होता तो शादी के बाद दोनों व्यक्तियों का टकराव अवश्य सामने आता ।
ऐसी कोई बात उनके वैवाहिक जीवन में नहीं दिखाई दी । तनाव की स्थितियाँ
ज़रूर आती थीं लेकिन वह बैसा ही तनाव था जैसा अपनी दुनिया में डूबे अत्यंत
संवेदनशील बुद्धिजीवी पुरुष और सांसारिक चिताओं से घिरी हुई एक सरल पत्नी
के बीच पैदा हो सकता है । पत्नी की मन:स्थिति को समझते हुए गुलेरी जी अक्सर
तनाव के क्षणों पर अपनी विनोदवृत्ति से क़ाबू पा लेते थे । पत्नी अगर कभी क्रुद्ध
होती तो वे छड़ी उठाकर घूमने निकल जाते । लौटकर चुटकी लेते हुए पृषते,
“क्या अब कोप शांत हो गया है?” और पत्नी हँस देतीं ।
मिन्नों को लिखे पत्नों में पत्नी का उल्लेख प्राय: “ब्राहाणी', 'ग़रीब शाहाणी',
“घर में से', आदि के रूप में आया है। काशी जाते समय रानी सुय॑ कुमारी को
लिखे एक पतन में गुलेरी जी कहते हैं--
“पिछले दिन से सामान बाँध रहा हूँ । '' सामान आदि सम्हालने में
मैं बिल्कुल ब्राह्मणी के परवश हूँ । ऐसी परिश्रमी तथा चतुर स्ल्ली अपने रोग
के रहते हुए भी इतना काम सम्हालनेवाली विधि प्रपंच महूं सुना न
दीसा ।'
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