राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला | Rajasthan Puratan Granthmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সাবহঘল [ ११ = জ৪০৮ वियेपावानहेतु विेपक वल का विनियोग होना है, तय विर्भिन्नर्खाघफ्ल उत्पन्न होते हैं। क्योंकि विशेपक यल उपजन त, उप यातय, विक्षेपक, विदोपा- धायक एव निरोयक भेदये पाँच प्रकार का है। शत वर्णाग्रम, वर्णलोप, वर्ण- विपयय, वणदि तथा प्रगृह्य अर्यात्‌ स्पस्त से स्थिति ये पाँच सन्यिफत उत्पन्न होते हैं। उपजनक-हप विनेपक बंय वर्णागम का, उपवानक वर्णलोप बा, विक्षेपक वर्शावियर्येय का, विशेयाघायत्र वदिश का तथा निरोयक प्रगृह्य रूप सन्यिफल का जतऊ है । निम्ताद्धि वबन मअभियुक्तो के द्वारा इन्ही पाँच सन्विफलो का निरूपण प्रिया गया है। वर्णागमो वर विपययस्तत्नोपन्नदादेध इमे विकाय 1 स्थिति प्रद्वयेति च पस्य मन्ये फलानि वण॒द्रय~ निक्पें ॥इत्ति॥ “मयौ होऽन्वतरस्याम्‌' ड सि बुद्‌ गि तुर, उणो इर्‌ इर्‌ धरि, श्च च, 'दोर्धात्‌', 'थ्रनचि च! इत्यादि सूनो से होने वाले द्वित्व वर्णायम के ही भ्रतर्मत है। इमी प्रतार 'स्वादीरेरिसो ', “ते च तृतोयासमासे', प्रवत्मतर- कम्बलवसनार्णदशानामृरे', “उपसर्गाह्ति घातोी इत्यादि-मे होने वाली वृद्धि सन्धियाँ भी भ्रकाररूप वर्णागम के ही उदाहरण हैं। गर्म, उद्ग्राभ, निग्राभ, सजभार, विव्ववाद्‌, मुड्‌, घुमू, इत्यादि भी इसी के उदाहरण हैं। गर्भादि में हु! से पूर्वं ष्व्‌ का भ्रागम तया विद्ववाड्‌ व घुर्‌ मे क्रमदाड्वग्‌का आगम है। 'उद स्थास्तम्भो पूर्वस्य', 'लोप जाकल्यस्पा इत्यादि वर्णलोप के उदाहरण हैं। उप्णिक्‌ आदि मे उत्त्‌ के तू जा लोप तथा तृचम्‌ मे र तया य का लोप भी इसी के उदाहरण हैं। “ग्रक्षादहिन्यामुपसस्यानम्‌' प्रादूहोटोब्य- पैप्येस' इत्यादि से होने वाली सन्बि वस्यविपर्यय का उदाहरण है जिसका स्पष्टीकरण मूल तथा ट्िन्दी-व्याध्या मे कर दिया गया है। “वश्यक” थब्द से निप्पन्न 'क्द्यप', 'क्श्य' से निप्पन्न कच्छ, श्रथ व इलथ शब्द से निप्पन्न गिथिर व शिथिल घव्द, अन दाब्दं से निष्पन्न रात्‌”, एवशव्द से निप्पन्न वे अब्द, तु जव्द से निप्पन्न उत्‌ शब्द भी इसी वर्णाविपर्यय के उदाहरण हैं। इसी प्रकार ब्रह म, वमरु, भूमा, भूयान्‌, निघण्दु आदि भी इसके उदाहररा हैं। आरम्भक बल मे विशेपक वल के उदय से जब लोप, आगम, विपयंय वलो के समुन्चय के कारण वणगुणों म किसी का वा नाश, किसी का




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