कवी "प्रसाद", "आँसू" तथा अन्य कृतियाँ | Kavi Prasad Aansu Tatha Anya Kratiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रयोग किया जाना चाहिए | इसीलिए हम देखते हैं कि भारतेन्दु”बाणू के समय और उनके कुछ समय बाद भी हिन्दी के कवि दोनों भोषाश्रों ! में कविता किया करते ये। अतएव स्व० आचाय पं० महावीरप्रसादजी द्विवेदी के सरस्वती का सम्पादन-भार ग्रहण करने के पूर्व तक कोई कबि केवल खडी बोली मे ही रचना करने के लिए प्रसिद्ध नदीं श्रा | द्विवेदीजी ने ही खड़ी बोली को हिन्दी-कविता का वाहन बनाया। 'वडस्स्वर्थ के समान उनका भी मत था कि बोलचाल की माषामें गद्य ही नहीं पद्य भी लिखा जा सकता है श्लोर लिखा जाना चाहिए # बड़ स्वर्थ' का यह स्वप्न सत्य नहों सका पर द्विंवेदीजी के लिए वह सत्य ही सिद्ध हुआ | इस सम्बन्ध मे उन्होने लिखा है-- 'गद्य श्रौर অন্তর জী লাগা पृथक्‌-पृथक्‌ न दोनी चाहिए 12 च्रापने 'कविता-कलाप? की भूमिका में जो २ फरवरी १६०६ में लिखी गई थी यह भविष्यवाणी भी की थी कि “इस पुस्तक की अ्रधिकाश कविताएँ: बोलचाल की भाषा मे हैं । ..इस तरह की भाषा . में लिखी गई कंबिता दिन पर दिन लोगों को अधिक्राधिक पसन्द आने लगी है। अतएव बहुत सम्भव है, कि किसी समय हिन्दी गय्य और पद्य की भाषा एक हों जाय ।? द्विवेदी-काल--(यह लगभग सन्‌ १६०४ से १६२० तफ माना जा सकता है) में देश मे राष्ट्रीया और देश की एकता की भावना लहराने लगी थी। ओर हिन्दी अपनी सरलता के कारण स्वय राष्ट्र-भाषा बनती जा रही थी! तत्र द्विवेदीजी के समान मविष्य द्रष्टा ने यह अनुभव किया कि जब गद्य की भाषा खढ़ी बोली हो रही है, तब पद्म की भाषा एक प्रान्‍द की उपभाषा ( बज-भाषा ) नहीं रह सकती। देश के अ्रन्य * “(६ जाए 96398] ৪0050 056 11676 15 17611119723 1207 01005 ৪0 01071)06 >शंएलशाः 075 12775088501 0:95 8৪701096108] 00171909160) ১৯ ४४०८5 (ठप.




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