अमरीकी संगीतकारों की जीवन कहानियाँ | Amriki Sangeetkaro Ki Jeevan Kahaniya

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
भी सतर्क रहना पडता था कि कही इण्डियनों का ध्यान उनके सगीत की ओर
आकर्षित न हो जाय । वे इस स्थिति से बचना चाहते थे । यदि भ्राप किसी
विशाल जगल में अकेले हो और लोगो की वस्तियों से भी बहुत दूर हो फिर
आप मौन रहना पसन्द करेगे चाहे आपको सगीत कितना ही प्रिय क्यो न
हो, आप अपने चारो ओर की आवाजे ही सुनेगे तथा आप इस बात से
बचेगे कि आपकी आवाज विचित्र और अज्ञात जीवों के कान मे न पड सके ।
फिर भी एक समय निश्चित था जब प्यूरिटन गाते थे और कुछ आदमी
इण्डियनों से उनकी रक्षा के लिये पहरा दिया करते थे। यह वह समय था
जब वे गिरजाघर जाया करते थे। वे अपने गायन को बहुत पसन्द करते थे
अतएव वे अपने पुराने देश से साल्टर (भजन-सग्रह) साथ ले आये थे। वे
अपने चर्च-स्यूजिक (गिरजाघर के सगीत) के लिये अधिक नियमित थे और
उन्होंने निश्चय ही चर्च ऑफ इग्लैण्ड के सुन्दर सगीत से अपने को बिल्कुल
भ्रलग कर लिया था । उन्होने ्राराघना-सगीत मे क्वायर सिगिग (गाने-बजाने
चालो के समूह-गान) को एक श्रग के रूप मे स्वीकृति नही दी 1 उनकी दुष्ट
मे एसा सगीत केवल रगमच से सवधित था श्रतएव वे उसको मनोरजक सगीत
के नाम से पुकारते थे और वे यह मानते थे कि इस सगीत का गिरजाघर मे
कोई स्थान नही हे । उनके दृष्टिकोण से गिरजाघर मे केवल वही सगीत
अपनाया जा सकता था जो सब मिलाकर स्वरमेल से गा सके । उन्होने सोचा
कि चर्च सविस (गरिरजाघर के आराधना-सगीत) मे सोलो (एकक सगीत)
ट्रेण्ण क्वायर (प्रशिक्षित नाचने-गाने-बजाने वाली मण्डली) और प्रशिक्षित
वाद्य-वादको के सगीत-कार्यो जैसे नाठकीय कार्यो के लिये कोई स्थान नही
था। वे यह मानते थे कि गिरजाघर मे गायन उनकी ऐसी सर्विस थी जिसमे
मी को माग लेना चाहिये था इसलिये सगीत इतना सरल होना चाहिए था
कि प्रत्येक व्यक्ति उसे प्रयोग मे ला सके । ऐसे सगीत का तात्पर्य यह था कि
एक ही स्वरारोह या ताल पर ध्वनित होने की स्थिति मे गायन चलता
रे । इसके कारण वाद मे सगीत की कठिनाइयाँ उठी जिनका उन्हे पूर्वाभास
न हो सका । जहाँ तक हम कह सकते है, साम सिगिग (मक्ति-गान) ही एक
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