यदि मैं तानाशाह बना | Yadi Mein Tanashah Bana

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Yadi Mein Tanashah Bana by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गरीवो कै प्रतिनिधि के लिए यही ससे उपयुक्त है १५ ` सबसे पहले सामान की जांच-पडताल की । उनकी पैनी निगाह्‌ ` से कुछ बचा न रहा । ठेर सारा सामान देखकर वह्‌ व्यथासे भर आए। बोले, “भाग्य से हम दूसरे दर्जे की कोठरी मे यात्रा कर रहे है किन्तु मान लो, हम निचले दर्जे के मुसाफिर होते तो इतने सामान की व्यवस्था कैसे करते | “ महादेवभाई ने उत्तर दिया, “कुछ ही घंटो में हमें तैयार होना पड़ा था । हमने ये सब सूटकेस उधार लिये है । घर पहु चते ही सब लौटा देंगे । इसके अतिरिक्त कई मित्रो ने अ्रपनी फालतू चीजे हमें दे दी है। हम इन्कार नही कर सके। कुछ जानकार मित्रो ने हमे आवश्यक चीजो से लैस रहने की सलाह भी दी है। इसीलिए हमे यह सब करना पड़ा। ॥ इसी तरह्‌ के बहुत से जवाव उन्हे दिये गए । लेकिन इससे वह और भी उत्तेजित हो उठे। उन्हे बडा आघात पहुचा। वोले, “तैयारी के लिए समय अभाव के का बहाना करना उचित नही है। मित्रो से कह सकते थे कि हमे इस सामान की कुछ भी आवश्यकता नही है। लेकिन तुम तो जो कुछ आया, सब लेते गये, मानो तुम्हे लद॒न में पाच वर्ष रहना हो। सूटकेस वापस कर दोगे, लेकिन इससे क्या । भ्रपनी गरीबी श्रौर परिग्रह्‌ कै संबंध मे क्या तुम्हारी यही धारणा है ” तुम या तो रवय अपने- को घोखा दे रहे हो या मुझे घोखा देना चाह रहे हो । तुमने मित्रो की सलाह ली तो तुम्हे उन्‍्हीके साथ रहना चाहिए था। यहां तो मेरे साथ हो, इसलिए मेरी सलाह के अनुसार चलना चाहिए।” अन्त मे यह्‌ निश्चय किया गया कि सभी श्रावश्यक वस्तुएं . न = ननः भु শা পা अचल




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