गांधी - विचार - रत्न | Gandhi Vichar Ratna
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खड १ : दर्शन १५
५३ धर्मं तो अरूग-अलग व्यक्ति का जलग रह सकता है |
प्रा० ग्र० २, १३५
५४ जवरदस्ती से किसी का धर्म नहीं वदला करता ।
प्रा० प्र० २, १३६
५५ धर्म-पलटा' शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं।
प्रा० प्र० २, २३७
५६ पैसे से धर्म नही चलता ।
प्रा० प्र० २, २३७
५७ भगवान तो हमारे पास पडा है, उसे हम पहचाने । सबसे वडा
गरजाधर है ऊपर आकाश और नीचे घरतीमाता । खुले मे क्या भगवान
ग़ नाम नही लिया जा सकता ? भगवान की पूजा के लिए न सोना चाहिए,
| चादी । अपने धर्म का पालन हम खुद ही कर सकते है और खुद ही
उसका हनन कर सकते है ।
प्रा० भ्र० २, रश्ण
₹--ছুহনহ
१ जिसे ईश्वर बचाना चाहता है, वह गिरने की इच्छा रखते हुए
प्री पवित्र रह सकता है ।
সা০ ০১ १६
२ जीवन की डोर तो एक ईचव्वर के ही हाथ मे है। ईश्वर का नाम
ठेकर, उस पर श्रद्धा रखकर, तू अपना मार्ग मत छोड |
आण० कृू०, २९५
ই इस ससार में जहा ईइ्वर अर्थात् सत्य के सिवा कुछ भी निश्चित
ही है, निरिचतता का विचार करना ही दोपयपृणे प्रतीत होता है ।
श्रा० क०, २२१८
४ पालन करनेवाला तो ईव्वर ही है ।
श्रा० क०, २२६
५ सपूर्णं ईदवरापेण के विना विचारो पर सपूर्ण विजय प्राप्त हो
री नही सकती 1
भा० कृ०, २७७
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