गांधी - विचार - रत्न | Gandhi Vichar Ratna

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Gandhi Vichar Ratna by माईदयाल जैन - Mayidayal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खड १ : दर्शन १५ ५३ धर्मं तो अरूग-अलग व्यक्ति का जलग रह सकता है | प्रा० ग्र० २, १३५ ५४ जवरदस्ती से किसी का धर्म नहीं वदला करता । प्रा० प्र० २, १३६ ५५ धर्म-पलटा' शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं। प्रा० प्र० २, २३७ ५६ पैसे से धर्म नही चलता । प्रा० प्र० २, २३७ ५७ भगवान तो हमारे पास पडा है, उसे हम पहचाने । सबसे वडा गरजाधर है ऊपर आकाश और नीचे घरतीमाता । खुले मे क्या भगवान ग़ नाम नही लिया जा सकता ? भगवान की पूजा के लिए न सोना चाहिए, | चादी । अपने धर्म का पालन हम खुद ही कर सकते है और खुद ही उसका हनन कर सकते है । प्रा० भ्र० २, रश्ण ₹--ছুহনহ १ जिसे ईश्वर बचाना चाहता है, वह गिरने की इच्छा रखते हुए प्री पवित्र रह सकता है । সা০ ০১ १६ २ जीवन की डोर तो एक ईचव्वर के ही हाथ मे है। ईश्वर का नाम ठेकर, उस पर श्रद्धा रखकर, तू अपना मार्ग मत छोड | आण० कृू०, २९५ ই इस ससार में जहा ईइ्वर अर्थात्‌ सत्य के सिवा कुछ भी निश्चित ही है, निरिचतता का विचार करना ही दोपयपृणे प्रतीत होता है । श्रा० क०, २२१८ ४ पालन करनेवाला तो ईव्वर ही है । श्रा० क०, २२६ ५ सपूर्णं ईदवरापेण के विना विचारो पर सपूर्ण विजय प्राप्त हो री नही सकती 1 भा० कृ०, २७७




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