शरत् - साहित्य | Sharat - Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीकान्त १५७ प्यारीके निजके सोर्मके कमरेम ठे आकर रतनने मुञ्चे जब शय्यां बता तब मेरे अचरजकी सीमा न रदी | में बोला, “' मेरे बिस्तर नीचेके कमरेमे न करके यौ क्यौ कयि! रतनने अचरजके साथ कदा, ८ नीचेके कम्रेम १ मैंने कहा, “ऐसी ही बात तो हुई थी। ६ वह्‌ अवाक्‌ हो कुछ देर मेरी ओर देखता रदा ओर अन्तम बोला, “ आपके बिस्तर होंगे नीचेके कमरेंमे ? आप मजाक कर रहे हैं बाबू |” इतना कहकर वह हँसता हुआ जाही रहा था कि मैंने उसे बुलाकर पूछा, “ तुम्हारी मालकित्त कहीं सोवेर्गी ? रतन बोला, “ बकू बाबूके कमेरेंसे उनके बिस्तर छगा आया हूँ। मैंने निकट आकर देखा,--यह राजलक्ष्मीके उस उद हाथ चेढे तरुपतेपर बिछाया हुआ ब्रिस्तर नहीं है | एक बंडे पछगपर एक खूब मोटा गद्दा ब्रिछाकर शाही बत्रिस्तर लगाये गये हैं | शीशेके नजदीक एक छोटी-सी टेबलके ऊपर सेजके बीचेंबीच लैम्प जल रहा है | एक किनोरे बगला भाषाकी कुछ कितांत्र हैं और दूसरे किनारे गुलदस्तेमं कुछ बेलांके फूल रक्‍्खे हैं। आँखोंसे देखते ही भने अच्छी तरह जान लिया कि इनमेंसे कोई भी चीज नोकरके हाथकी तैयार की हुई नहीं है। जो बहुत प्यार करती है, ये सब्र चीज़ें उसीके खुदके हाथें तैयार हुई हैं | ऊपरकी चादर भी राजलक्ष्मी खुद अपने हाथ भिछछा गई दै, यह मानो अन्दर ही अन्दर भैने खूब अनुभव किया । आज उन छेोगौके सामने मेरे अचानक आ जानेके सवव राजलक्ष्मीने, हत- बुद्ध हो, पहले चाहे जैसा व्यवहार क्यों न किया हो, पर यह बात मुझसे अज्ञात नहीं रदी कि भेर निर्विकार उदासीनता बह मन दी मन शङ्कित दो उठवी थी ओर यह भी मुझे मालूम हो गया था कि मेरे भीतर ईर्षाका प्रकाश देखनेके लिए. उत्सुक हो वह इतनी देखे इतनी सरहसे क्यो बार बार आघात कर रही थी | किन्तु, सब-कुछ जानते हुए भी, अपने निष्ठुर स्वभावकों ही मदोनगी समझकर मेने उसका जरा भी अभिमान नहीं रहने दिया,--उसके प्रत्यक छोटेस छोटे आघातको सो गुना करके वापिस लौटा दिया । उसके प्रति किया गया यह अन्याय मेरे मनके मीतर अब सुई्की तरह चुभने लगा | में बिस्तरपर लेट गया किन्तु सो नहीं सका। में यह निश्चय




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