सुख की एक झलक | Sukh Ki Ek Jhalak
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंपरंग से नहीं करता । स्नेह 'कौ' ही बंधन ' का कार्रण
पानता है! यंही भी समयतार में कहा हैं।? `
लोक! कब . ततस्तु सोस्तु च॑ परिस्पन्दात्मके केम तत् |
तानि--अस्पिन् करणानि सन्दर चिदविद्वापादन चास्तु तत् ।
रागादिन्युप्योग भूमिमगथद्वाक्ञानं ' भवेत् फैषदम्; बन्ध
नेव कतोदयप्युषेत्ययमदो सथ्यग्यास्सा घ्रषम् । न
नेह तो भगवान से भी अच्छा नीं । जं चिक्कण होगी
बही तो धूल कण इत्याद जमेगे देखो स्नेह से दी तिष्ट
जिसमें तेल रहता है, घानी में पेला जाता है, बाल को
कोई भो नही पेल्ता | क्ृतांववक्र जो महाराज राम चन्द्र के
सेनापति थे जब वह संसार से .विरक्त हुए तो राम कहने
लगे देखो तुम बड़े सुकुमार हो । आज तक तुमने किसी
को तिरस्कार नदीं सहा यह दगम्बारी.दीक्षा कसे सहन
करेओे उसी स्मय कृवतिवत्छर दहते है किं हे) राजा राम
तुमने कहा सो ठीक हैं | मुझे तो तुमसे दद्या जवरदस्व स्नेह
था यही मेरे ६ ए,सच से बडी परिष्या थी । सों जब मेंने
तुमसे स्नेह तोड़ दिया! तो यह दगम्बरी दीक्षा कौन सी
बडी घात , हैं । तो स्नेह से ही मनुष्य पंन्धन में पड़ता है।
परमार्थं दृष्टि से तो भगवान से भी स्नेह बंधनको' कारण
ই | मरुष्य- नाना प्रकार की कामन भगवानं से याचना
करता है यह कितनी बड़ो भूछ है | जी भगवान, उपेक्षकः
২ +
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