अम्बा | Ambaa

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Ambaa by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे सकता वे पात्र स्वयं इतनी दूर चले गए: हैं या मेंने उन्हें खदेड़ा हे। इतना तो जरूर कहूँगा कि मुझ में उन्हें उतनी दूर खदेड़ने की सामथ्य न थी । भीष्म महाभारत के बहुत ऊँचे पात्र हैं | उनके पास जाते हुए मुझे सदा डर लगता रहा है, पर श्रम्बा ने उनके पलि दोड़कर मुझे मेतरह दोड़ाया है | हा, अम्बा ने उन्हें पकड़ जरूर लिया है । लेकिन में भी भीष्म को पकड़ पाया हूँ इसमें श्रमी में बहुत संदिग्ध हूँ। आम्बिका ओर अम्बालिका के व्यंग्य ओर मर्मभेदी विचारों में लचीले पाठकौ को उत्कट क्रान्ति कौ “श्रान्ति' होगी पर वह सत्य भी हो ही सकती हैं| विदूषक ने जरूर मुझे बहुत तंग किया हैं। कभी कभी में उससे बेतरह खीज भी उठा हूँ लोकिन उसकी मीठी ओर कटीली कचोटन में मुझे आनन्द भी मिला है। काशेराज के सामने स्वप्न एक पहेली बनकर आया ओर वे उसी पहेली में अन्तर्लीन हो गये। उनके संदेह में, उनकी निराशा में ओर उनके सुख में स्वप्न ने जिस विकराल दृष्टि से कॉका हैं उससे वे कभी मुक्त न हुए। सत्यवती ने उजली आँखों के कोर्यों के पास बिखरी हुई कालोंच देखी, उसने विषमता और समता को मिलाकर संसार में जिस निराशा की धारा बहा दी उस से वह स्वयं कभी न निकल सकी | उसके अनन्त यौवन ने अनन्त पीड़ा का परिधान पहिना। एक बार, केवल एक बार वह अपने जीवन में हँसी, उसके बाद वह सदा रोती रही । इस चरित्र ने विलास की आँखों से छुलक कर आँसुओं की सॉंसे लीं ओर दुख के घने प्रवाह में अपने मीठे ओर सुनहले संसार को सदा के लिए, डुबा दिया ! नाटक की यूनिटी के लिए मुझे अधिक पारिश्रम नहीं करना पड़ा है। वह तो स्वयं वैसे हो दी गया है मेरे पात्र मेरे अपने ही हैं, यह में केसे कहूँ! विषमता और समता दोनों का ही नाम तो सृष्टि है। साधारण दर्शक को




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