प्यारे बापू (बचपन और शिक्षण ) | Pyare Bapu ( Bachpan Aur Shikshan )

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Pyare Bapu ( Bachpan Aur Shikshan ) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वचपन ओर शिक्षण ९२ संन्धासी ने उत्तर दिया ; “एक वार एक बुद्धिमान्‌ संत था, जो बहुत दान देता था । बह प्रार्थना भी करता था | लेकिन अंक रोज उनके जीवन की ज्योति बुझ गयी। ये मर गये | तव उनकी आत्मा सीधी खर्ग पहुँची, परंतु वहाँ खर्ग का दरवाजा बंद मिला। परमात्मा अंदर बेठे थे | उनकी खटखटाहट सुनकर उन्होंने पूछा: “बाहर कान है १” “परमात्मन्‌” में हैँ । आप स्वर्ग का द्वार खोलकर मुझे आने दीजिये |” लेकिन परमात्मा ने उत्तर दिया : “तुम अभी स्व में नहीं आ सकते हो | भू-लोक को वापस जाओ और सर्वो त्तम ज्ञान खोजो । ज्ञान मिलने पर फिर आना ।” तो ये संतत फिर भू-लोक में वापस आये और दुबारा जन्म लेकर उन्होंने बहुत दान-पुण्य क्षिया | थे मंदिरों में जाते थे ओर जब उनके जीवन की अबृधि पूरी हुई, तब उन्होंने समझा कि कप-से-कप अब में स्वर्ग में जाने लायक हो गया हैँ । ईश्वर ने दुबारा उनसे पूछा ; “बाहर कौन है १” “परमात्मन्‌ , में हूँ ! खोलिये, आपका लड़का वापस आया है |”! लेकिन परमात्मा ने कहा : “तुम अभी भी खर्ग में




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