लोक परलोक का सुधार | Lok Parlok Ka Sudhar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द लोक-परलोकका सुधार भाग ३
केनोपनिषदूमें अनेक मन्त्रोद्दारा यह बात बतायी गयी है कि
ईश्वर ही हमारी सम्पूर्ण इन्द्रियोमें शक्ति और प्रकाश दे रहा है ।
श्रोत्रस्य श्रोन्नं मनसो मनो यद् वाचो हि वाक् स उ प्राणस्य प्राणः।
वही कानोंकी श्रवणराक्ति, मनकी मननराक्ति, वाणीकी
वाक्राक्ति और प्राणकी जीवनशक्ति है
यन्मनसा न मनजुते येनाहुमेनो मतम् | तदेव ब्रह्य त्व विद्धि ।
“जिसका मनके द्वारा मनन नहीं हो सकता, जिसकी शक्ति
पाकर ही मन मननशक्तिसे सम्पन्न हुआ है वही ब्रह्म समझो |?
यहाँतक ईश्वरकी सत्ता, महत्ता, स्वरूप तथा सम्बन्धके विषयमें
कुछ थोडे-से शाल्लीय प्रमाणोंका दिग्दर्शन कराया गया | तवी और
युक्तिके द्वारा विचार करनेसे भी इश्वरकी सत्ता प्रत्यक्षवत् सिद्ध हो
जाती है |
हम यह प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं कि हमारा ज्ञान, हमारी शक्ति
और हमारी विद्या सब थोडी है, किंतु हम सदा उसे बढ़ानेकी चेष्टामे
लगे रहते हैं । प्रव्येक स्वल्पता महत्ताकी ओर अग्रसर होती है |
स्वल्पता ही महत्ताकी सत्ता सिद्ध करती है ।
जीवरमें अल्पशक्ति है, तो कहीं पूर्ण या सवशक्ति भी होगी ही ।
जहाँ होगी, वही सर्वशक्तिमान् रर है । इसी प्रकार पूर्णं ज्ञान,
पूर्ण आनन्द तथा पूर्ण विद्याके भण्डार श्ट्वरका होना निधित है ।
नदीकी सीमित जल्घारा अक्षय और अनन्त जलके भण्डार समुद्रकी
ओर अग्रसर होती है । इसी प्रकार सीमित जान, गक्ति ओर विघावाला
जीव असीम ज्ञानानन्धके मागर परमात्मार्मे मिलकर पूर्णतम होनेके
लिये सदा यत्नशील रहता है | यह प्रय दी उसकी साधना है |
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