समन्वय | Samanvaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९. गण॒० ] गणेश के नाम-रूप मानव-ण्ह्यसूत् ( २। १४ ) से जान पड़ता है कि पहिले) चारे-विनायुक माने, जाते थे, ( १) शालकटकट, (२ ) कृष्माडराजपुत्र, ( ३०) अजस्मिते; (.४“) देवयजन | तथा यह माना जाता था कि ये मनुष्यों मे, ज्लियो मे, बलों मे प्रेततत्‌ आवेश प्रवेश कर के विविध उपद्रव करते-कराते थे । और इन की शांति, मद्यमासादिक के अपंण तर्पण से, की जाती थी, जैसे आजकाल भी, विशेष कर “छोटी? अथवा नीचः कलने वाली तियो मे, श्रौर पर्व॑तो मे श्रधिकतर, भाड-फूंक, टोना-टोटका, उतारा, डोला आदि के विविध उपचारो प्रकारो से, मूत-प्ेतादि की ओौर रोगादि की, की जाती है । याक्ञवल्क्यस्पृति के समय श्राने तक ये चार एकत्र कर के एक चना लिये गये थे, पर नाम इस एक उपदेव के छु रहे, जो उक्त चार के ही रूपातर है, यथा, शाल, कटकट, कूष्माड, राजयु्र, मित गनौर सम्मित ( १-२७१; २८५ ) । # # वाल्मीकिं रामायण मे, तथा महाभारत मे, सालकरंकट श्रौर शाल- कटंकय शब्द राक्षुस-राक्लसी के नामो में मिलते हैं । आधुनिक मंगोलियन जाति इस 'राक्षुस?-नामक महाजाति की वश-परंपरा मे जान पडती है। यथा भुद्रा-राक्षस? नाटक से विदित होता है कि नद का मंत्री 'राक्षुस?, अर्थात्‌ तिब्बती या चीनी, খা। इस प्राचीन महाजाति का वासस्थान, अय्लाटिस महाद्वीप, जलग्रलय से समुद्र-मम्त हो गया, सहसं वर्ष पूर्व, ऐसा कुछ वैज्ञानिको का विचार है। सभव है कि यह नाम और रूप चीनियों तिन््तियो के द्वारा श्रदल-बदल कर भारतवर्षं मे पहुँचा हो | बुद्धदेव के पहिले, पुराण काल मे, तथा उन के पीछे, सम्राट हर्ष- वर्धन के समय तक “चीन? देश और भारत में परस्पर व्यवहार और यात्रियों का आना-जाना খা, यह प्रायः असदिग्ध है। हिमालय समूह के अतर्गत गध- मादन प॑त पर, (नरवाहनः कुबेर के “यक्ष-राक्षुसो! से, भीम के युद्ध का वर्णन महाभारत मे है, कुबेर पहिले भारत के दक्षिण लकाः मे रहते ये, उन की वह्‌ राजधानी, जव उन के छोटे भाई राद्तस.शिरोमणि रावण ने उन से छीन ली, तब उत्तर मे आ बसे, ओर “अलका? की रचना कराई; इत्यादि कथाओं से, भारत के दक्षिण, पूवे, और उत्तर मे 'राक्षुस” जाति के मनुष्यों के विस्तार की सूचना होती है ।




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