श्रीराम -चरित्र | Sri Ram Charitra

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Sri Ram Charitra by भास्कर रामचन्द्र भालेराव - Bhaskar Ramchandra Bhalerao

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बालकांड १७ | मंत्रियों से कहा ।। तब सभी ने राजा के निश्चय का अनुमोदन किया । शीघ्र ही अश्वमेध-यज्ञ की सामग्री एकत्र करने का ग्रबंध किया गया। शरयू-के तट पर एक विस्तीण यज्ञ-मंडप, बना कर यज्ञ के लिए सहस्रों मन अन्न सामग्री एकत्र की गई। तब राजा 'दशरथ ने अपनो तीनों रानियों को यज्ञ को दीक्षा लेने की आज्ञा दी । संतान न होने से उनके मुख सर्वदा चिंतित ओर कुम्हलाएं हुए रहते थे, अतः राजा की यह्‌ आन्न सुनते ही उनके मुख कमल सेखित गये। गुर वसिष्टने राजा दशरथ को उनकी तीनों रानियों सहित यज्ञ-दीक्षा दे कर यज्ञ का घोड़ा छोड़ा । वह घोड़ा बहुत से देश घूमकर और उसके वापिस आने पर ऋत्विजों ने यथा विधि उसका अग्नि को बलि दिया तथा अश्वम्ेध के संपू् होते ही ऋष्यश्वंग ने दशरथ के लिए पुन्नकाम्ेष्टि यज्ञ का आरंभ क्रिया । ( बालकांड सर्ग ११ ) ऋष्यम्वंग को खासकर पुत्र-कामेष्ठी के लिए ही निमंत्रित किया था । वे राजा दशरथ के जामाता थे। उत्तकी कथा बड़ी विचित्र ओर मनोरंजक है। वे विभाण्डक ऋषि के पुत्र थे ओर बचपन से उनका अपने पिता के ही निरीक्षण में प्रतिपाजन हुआ 'था | विभाग्डक ऋषि अपने पुत्र को पल भर भी अपनी आँखों की ओट में नहीं जाने देते थे। इस प्रकार से उनका लालन- पाजन होने के कारण वे अत्यंत तेजस्वी ओर विद्वान ब्राह्मण कह- लाने लगे । एक समय. राजा दशरथ के मित्र, 51 देश के राजा, लोमपाद के राज में बड़ा अकाल पड़ा, जिससे- सारा देश दुखित हुआ ओर प्रजा विना अन्न-पानी के भूखों मरने लगी । तव कड लोगों ने राजा लोमपाद को सलाह दी कि यदि अप ऋष्यश्ग




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