पंचेन्द्रियचरित्र | Panchendriya Charitra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मूमिका । (७)
झततश्व जनवादश परादन्तथापनृततम ।
सीणाचे प्रेश्नणालम्भमुपषातस्परस्प च ॥ २७९ ॥ २ अ०
जिन को ग्हस्थाश्नम पर्सिद हों उन को उचित अवस्था पर धर्माठुसार अपने
তল के वृद्ध जने की सम्मतिं से एक शीलूवत्ती कुमारी से विवाह कर लेना
उचित ई 1 यह स्मरण रहे कि सर्व प्रकार से वांछित गण कहीं जगत লিভ नहीं
सकते. इसलिये अपनी आप्त सत्री के उन्हीं गुणों से संतोष करना उचित्त है जो
अपने रदभाव से मिलते हों, महात्माओं ने सच कहा है-
वहत मिद वहु भांति, मन अनमिट सव सैं रयौ ।
जास! ज्ये की पाति, ते दुरम जग पावने॥
ज्ञान सरीरा गरु न भिल्यया, चित्त सरीखा चेदा 1
मन सश्खा मनमेद्ध् न मिल्यया, ताथ गोरख फिरे अकेला ॥
মন मन साखा, मिटे न होय समाधि
परत्षा रहिये एकला, त्जि दूसरी उपाधि ॥
मिलिये तो जो मन मिले, मनके मते न सेल ।
जगनायथ नीकी हें, एका एकी खेल ॥
सर्व भकार से वांछित तस्॒ परमात्मा ही है, जिस का पाकर यति शांति पाताहै,
सो आत्मा * सत्येन रूभ्यस्तपसा हीप आत्मा सम्यम्न्ञानेन अह्मचर्येण नित्यम्,
अन्तः दारीरे ज्योतिर्मयो दि श्रो य पड्यंति यतयः क्षीण दोषाः ॥
सौ आत्मा स्थ भकार से यापन कगने योग्य है, विप्यौकी ओर मन के
जाते हुये भी अंतर इच्छा जीव की आत्म तत्व ही पर होती है, क्योकि वांछित
विषय को पाकर भी अंतर तृप्ति नहीं होती | अंतर इच्छा वारंबार उस अमोछ
कस को ही चाहती है जिसकी सध्श और कोई वस्तु है नहीं, यथा+-
हुई जग जाकी उपमा नाहीं। रे मन सोई बसे त्वहि मांही ॥
जा स्वरूप सब जगत सभुखाना } देसी छंदरि कोड नां जाना ॥
कामिनि कामकला अधिकाई । ताहि न मिले ती कंह चतुराई 0
जाकी चमक झलक जग मोदे | जा विन कोऊ फूल न सोदे ॥
जो फूछन को दे सुंदरता । सोई उमँग मांदिं मन करता ॥
जिते जवाहिर चनि छनि छावा । दीपक चंद झरोखें आवा ॥
उदित मकाश्च महल अर मेया । सव जग देखूं सोड् उजेरा ४
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