नया समाज | Naya Samaj

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Naya Samaj by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फरवरी, १९५५ सारे भुल्कमे तरह-तरहके उद्योग-धन्धोका एक जाल्‍ू-सा विछ जाय। हालाँकि सरकारी पक्ष को समाज और जर्ये- नीतिके किसी भी क्षेत्रमे प्रवेश करनेकी पूरी आजादी रहेगी, लेकिन अभी काफी समय तक ऐसे हालात पैदा नही हो सकते कि राष्ट्रीय अर्यनीतिके सब क्षेत्रोमें केवल उसीका एकाधि- पत्य हो। मसलन खेतीके सबसे बडे उद्योगकी जननी घरती जरूरी तौरपर गैर-सरकारी हाथोम ही रहेगी। इसी तरह छोटे उद्योग-धन्धे भी ज्यादातर गर-सरकारी हाथोमें रहग, हालांकि उनका सहयोगी आधारपर सुब्यवस्थित होना चहररी है। यही वात दूसरे छोटे उद्योगोके बारेमें भी लागु है। कुछ बडे उद्योग-धत्योको भी, अगर सरकार उनकी जिम्मेदारी अपने ऊपर न छेता चाहे, तो गैर-सरवारी हाथोमे सौंप देना फायदेमन्द ही होगा। जब वस्तुस्थिति यह है, तो हमें गैर-सरकारी पक्षके प्रति एक स्वस्थ दृष्टिकोण अपनानो होगा और साथ ही अपन समाजवादी व्यवस्थाके लक्ष्यकी पूत्तिका सदा ध्यान रखते हुए किसी ऐसी प्रवृत्तिको पैदा नही होने देना होगा, जो कि आगे चलकर हमारे मार्गेमें वाधक वन सुके। इस तरह सरवंपरी और सैर-सरकारी उद्योग-घन्धोको साथ-साथ अल्भेक्‍ा एक परिणाम दोनोमें एक तरहकी स्वस्थ प्रतियो- पिता भी होगी। यहाँ हमे यह बाठ हमेशा याद रखनी चाहिए कि अर्यन्तीत्तिका जो बडा खाका हम तैयार कर रहे हैँ, उसकी कसौटी हमेशा अधिक उत्पादद और अधिक वाकारी ही होने चाहिएँ । साधन-सामप्रौका सदुपयोग मेरा बकीन है कि हम छोग अपने देशमे एक বক निर्माण-कार्य और कछांग्रेसनन ७९ औद्योगिक विकासकी शुरूआत कर रहे हैँ। इसके लिए हमे अपनी सारी साधन-सामग्रीका भरपूर उपयोग करना होगा और कसी भी चीजको बेकार नहों खोना होगा। इसका आर्थिक पहलू तो महत्त्वपूर्ण है ही, कितु इससे भी कही ज्यादा महत्त्वपूर्ण हे जौद्योगिक-क्रान्ति लानेके लिए सुशिक्षित और सुदक्ष व्यक्ति 1 मुझसे खतरा यही दिखाई देता है कि सुदक्ष व्यक्तियों कमीकी वजहसे हंघारे औद्योगिक विकासकी गति कहो घीमी न पड जाय। हमारे पास मानव-दक्ति कापी है--और कभी-कर्भी तो मानव-शक्ति पूंजी तककी जगह भी ले सकतीं है। लेविन विना सुशिक्षित मानद-शब्तिके हम झयादा दूर नहीं वढ सक्‍ते। इसल्एि हमें अपने प्लानिंगमे पहलेसे ही यह तय करना होगा कि सभी राष्ट्रीय प्रवृत्तिमोके लिए काफी सब्यामें लोगोकों शिक्षा दी जाय । वडे-बडे उद्योग-धन्धोकी हम चाड़े जितनी मी सरवकी क्यो न कर ले, लेक्नि उतना ही शोर और व्यापक विकासको चेष्टा हमे छोटे-छोटे उद्योगो शौर कुटीर शिल्पके छिए भी करनी पडेगी। काग्रेसने हमेशा ही घरेलू उद्योग-घन्धो वी तरबवकोकी माँग की है। आज तो उनकी तरक्कीकी जरूरत और भी ज्यादा है, क्योदि' विना इसके न तो सारे बेकारोको काम ही दिया जा सकता है और न कुल उत्गदन ही वढाया जा सकता है। मेरी रायमे तो बड़े और छोटे उद्योग-धन्घोमें किसी भी तरहका बुनियादी सघर्प नहीं है, वरात्तं किं उन उनप्ति वरनेका हमारा ढंग सतुलित और सुयोजित हो। . ( अवाडी-काग्रेसको पेश की गई रिपोर्टसे ) निर्माण-कार्य और कांग्रेलजन श्रीमती साविती निगम (सदस्या, राज्य-समा) हमं समी जानते हँ कि हमारे नवनिर्माण-यकज्ञकेदोदी बडे शत्रु हे--प्रतिक्रिववादी राजनीतिक दल तथा देश- बासियोमें चढती हुई च्ारितरिक दुबेखता। किन्तु खेद यह है कि देशमे आज कांग्रेस-जेसी महान्‌ ऐतिहासिक एव प्रतिष्ठित राजनीतिक सस्थाकी उपस्थितिमें ये दोनो शत्रु सिर कैसे उठा रहे हें? कांग्रेस-जेसी सस्थाके, जो युग- जिर्भाता मौचीजीती गोदसे चछी और जब देशके सच्चे जद- मभायक एवं हृदय-सम्नाट नेहरूजीके पूर्ण चात्सल्यकी अधि- कारिणी तथा जनताको श्रद्धाकी पात्र होदे हुए भो प्रतिक्रियावादी उचक्ककि पुमरवरिमे जनताका आ जाना या हमारी आपसी फूट, ईर्प्या, ढेंप तया गुट्बन्दीके कारण उत्पल्त्र उयल-पुथछ और रचतात्मक कार्योमें रुकावरटें-.. ऐसी बस्तुएँ नही है, जिनकी हम यो ही उपेक्षा करें। दलबन्दि्पोका दुष्परिणाम अच प्रन यह्‌ उठता है क्षि आखिर दोपोकी गठरी हम किसके सिरिपर रखें--अयने या सस्वाके अथवा नेताओके ऊपर ? कुछ मी हो, यदि हम गणतात्रिक परस्पर मे विद्वास रखते है और अपने तथा दूसरोंके साथ न्याय करना चाहते है, तो हमें सबसे पहले यह गठरी बयने ऊपर हो रखनी होगी, क्याकि सस्या तथा नेता दोनोमें ही शक्ति एवं जीवन




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