श्री तीर्थंकर चरित्र प्रथम भाग | Shri Thirthankar charitra Part 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शशक. =
| ॐ पश्चात्, शरीर त्याग, दवितीय करप ( ईशान्य देवलोक } मे
, लल्लितांग देव हुआ । लल्ितांग देव की, स्वयंप्रभा नाम्नी
प्रधान देवी थी।
। उधर महावल की मृत्यु का हाल जानकर, स्वयंबुद्ध मंत्री
को भी संसार से वैराग्य होगया । उसने, भी गृह-संसार त्यागः
दीक्षा ले ली और संयम की निरतिचार आराधना करके, समय
पर शरीर त्याग, द्वितीय कल्प मं सामानिक देव हुआ | देव होने
के पश्चात् भी स्वयंवुद्ध, श्रपने पूर्वं स्वामी म्ावल-श्सं
, समय के ल्तितांग देव-का हितचिन्तक ही रहा, श्रीर स्वयं
प्रभा देवी के विरह से पीड़ित ललितांग देव को, समभा-
षुभाकर धमेपर दढ़ किया ।
श्सी जम्बु द्वीप की पुष्पकलावती विजय में स्थित,-
लोहागंल नगर के राजा का नाम स्वरीजंघ था । उसके, ल्मी
देवी नाम की रानी थी । ईशान्य देवलोक का श्रायुष्य समाप
करके, ललितांग देव ने इस लद्टभीदेवी रानी की कुक्ति से जन्म
लिया। यहां उसका नाम वज्जज॑घ रखा गया | उधर अपने पति
ललितांग देव के विरह से, स्वयंप्रभा देवी पीड़ पाने लगी। ˆ
, अन्त में स्वयंप्रभा देवी भी, देवलोक का आयुष्य समाप्त होने
पर, दसी पुष्पकलावती विजय स्थित पु-डरीकिणी नगरी केराजा
यञ्जसेन की पुत्री हुईं। यहां स्वयंप्रभादेवी का नाम श्रीमती हुआ
श्रीमती युवत्री हुई। दक दिन चह अपने सहल की छत पर
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