जड़वाद और अनिश्वरवाद | Jadvaad Or Aniswarvaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जडवादका सामान्य स्वरूप ३९. स्मएण) इच्छा, द्वेष, क्रोध श्यादि चृत्तियाँ इसीके गुण हैं &। वचपनसे बुढ़ापे तक “स एबाहं ? ( मैं बही हूँ ) की भावना इसी अविनाशी वस्तुकी निरन्तर होनेवाठी एक-सी अनुभूतिे हयी पैदा होती है । अध्या्मवादिरयोके इन विचररोपर यदि अधिक गहराईसे विचार करें, तो वे टिकनेवाले नहीं हैं | यह माना कि आज तक रसायनशाढामें सजीव पिंडका निर्माण नहीं किया जा सका, तथापि पदार्थ-विज्ञान (15108) ओर रसायन-शात्र (010ए18४9 ) के आधारपर इन्द्रिय-विज्ञान ( ९19 ४००४५ ) और जीवन-शाख्र( 57०10? ) जो प्रगति कर रहे हैं तथा जी-पिंडमे त्रियमान अनेकं ऐसी बातोंका, जो आजतक गूढ़ मानी जाती हैं, आविष्कार कर रहे हैं उससे निश्चित रूपमे इसका प्रमाण मिछ जाता है कि जीवात्माका देहसे अतिरिक्त अन्य फोई स्पतंत्र अस्तित्व नहीं है ! ० सजीव देहपिंड अपने चारों ओरकी अजीब सश्हीसे उनपन हुआ और विकसित हुआ है। चारों ओरकी परिस्थितिपर ही वह निर्भर है | उस परिस्थितिका ही जीव-पिंड एक परिणाम है। डेढ़ सी अंशसे कम तथा झूल्यसें अधिक उष्णतामें ही इसका अस्तित्व रह सकता हे } पृथ्वीसे पाँच मील्की अपेक्षा अधिक ऊँचाईके वातावरणमे वह. जीवित नदीं रह सकता । जिस परिस्थितिमें कार्बनप्रधान प्रोटीन नामक संयुक्त द्ब्य उत्पन्न नहीं हो सकता, उसमें इसका अस्तित्व असंभव है। जलने- गली उष्गतामे तो किसी भी प्रकाएका जौवपरिड नहीं टिक ------ त मा भक्पका जोड नही पक सकता। शरणपाननिमेषोन्मेपजीवनमनोगतीन्दियान्तरविकरस , सुखदुःखेच्छाद्रेष- भयल्नश्चत्मनो लिङ्गानि । ( वैशेषिक सू २।२।४ ) अर्थात्‌ ¢ বাবা, আঁবীক্ষা खुलना बन्द होना, जागना, मानसिक ` क्रिया, সিন भिन्न उन्दियकि विशार, उलदुःल, इच्छा, देष प्रमृत्ति - आदि प्रदृत्तिय आत्मके लक्षण हैं । है. इक ~ ५ के `




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