शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर (दूसरा भाग) | Shalopyogi Jain Prashnottar (Volume-2)

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Shalopyogi Jain Prashnottar (Volume-2) by गुलाबचंद संघाणी- Gulabchand Sanghani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) युष्प, मनुष्य का आयुष्य और देवता का आयुष्य, (३०) ग्रश्न नाम कमे के कितने भेद ই? उत्तर; दो शुभ नाप व अशुभ नाप, (२१) भरश्नः नाप कमं किसे कहते द ? उत्तर; जिस के उदय से जीव अरूपी होने पर भी नाना विध गति में अनेक प्रकार के रूप धारण करते हैं उंस कमे को नाम कर्म कहते हैं, (३२) प्रश्नः शुम नाम कर्मके उद्य से क्या फल श्ल्ि? उत्तर; उसके उदय से जीव, गति, जाति शरीर अगोपांग, रूप, लावए्य तथा यशोक्रीर्ति आदि अच्छे पाते हैं. (३२) भरन; अशुभ नाम कर्मके उद्यसे क्या होवे! उत्तर; उसके उदय से जीव, गति, जाति, शरीर ` ` ` अगोपांम) रूप, जतावरण्य तथा यशोकीति. आदि अच्छे न पावे, (३४) प्रश्न; गोत्र कर्म के झुख्य कितने भेद ! उत्तर: दो, उच्च गोत्र व नीच गोत्र (३४) मश्न) गोन्र मायने क्या ! उत्तर; कुछ अथवा वंश, সই (३६) प्रश्न! उच्च गोत्र किसे कहते हैं




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