श्री राम चरित मानस | Ram Charit Manas

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Ram Charit Manas by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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््ै पर श्री राम॑ चरित मानस सो०-जो सुमित सिधि . होई गननायक करिवर बदन | करी. अनुग्रह सोइ बुद्धिरासि सुभ गुन सदन ॥। मूक हो बाचाल पंगु चढ़े गिरिवर गहन । _ जासु कप सो. दयाल द्वी सकल कलिमल.दहन ॥ नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन - बारिज. लयन । करी सो मम उर धाम -. सदा . बीर सागर... सयन ॥ ः कुंद इंद सम देह उमारमन करुनाअयन । जाहि दौन पर. नेह करी कृपा. .मर्दन मयन्‌ ॥। बंदों गुर पं कंज कृंपासिंघु नर. रूप हरि । द महा मोह तम पूज . ज़ञासु बचन रबिकर निकर | बंदी गुर पद पंदुम॑ परागा । सुरुचि सुबास .सरस .अ्नुरागा ॥ अमित्नें मूरि मय चूरनु चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥ सुक़ृत संभुं तन बिम॑ल बिमूती मंजुल मंगल . मोद्‌. प्रसूती ॥ जन मन मंजु मुकुंर मल हरनी । किए तिलकु गुन ग़न बस करनी ॥ श्री गुर पद नख मंति गन जोती । सुमिरत दिव्य दृष्टि हियू होती ॥ दलन मोह तम सो सुप्रकासू । बड़े भाग उर आवै. जासू | _ उधघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूमहिं रामचरित मनि मानिक । गुपुन प्रगद जहूँ जो जेहिं खानिक ॥ दो०--जथा सुभ्रंजन अंजि दंग साधक... सिद्ध खुजान । .. कौंतुक देखंहिं सेल बन भूतल- मुरि निघान ॥ १ ॥ गुर पद रज मूद॒॒मंजुल अंजन । नयन अमिश्नें दग. दोष बिभंजन ॥ तेहि करि बिमल बिबेक बिलोचन. । बरनों. रामचरित भव मोचन ॥ _ बंदों प्रथम महीसुरंचरना । मोह॒जनित .संसय सब हरना ॥ खुजन समाज सकल गुन खानी । करों प्रनाम सुप्रेम सुबानौ ॥ . रै-म्र० सदु मंजुल रंज । दिं० रज सृदु मंजुल 1 तूर ले ० द्ि० ।




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