कामचोर | KAMCHOR

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इस्मत चुगताई - Ismat Chugtai

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इतनें में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारी वाली की टोकरी पर ट्ट पड़ीं। वह दालान में बैठी मटर की फलियां तोल-तोल कर रसोइए को दे रही थी। वह अपनी तरकारी का बचाव करने के लिए सीना तान कर उठ गई। आपन कभी भेड़ों को मारा होगा, तो अच्छी तरह देखा होगा कि बस, ऐसा लगता हे, जैसे रूई के तकिये को कट रहे हों। भेड़ को चोट ही नहीं लगती। बिल्कुल यह समझकर कि आप उससे मजाक कर रहे हैं, वह आप ही पर चढ़ बेठेगी। जरा-सी देर में भेड़ों ने तरकारी छिलकों समते अपने पेट की कड़ाही में झोंक दी। इधर यह प्रलय मची थी, उधर दूसरे बच्चे भी लापरवाह नहीं थे। इतनी बड़ी फोज थी- जिसे रात का खाना न मिलने की धमकी मिल चुकी थी। वे चार भेंसों का दूध दुहने पर जुट गए। धुली-बेधुली बालटी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़। भेंस एकदम जेसे चारों पेर जोड़कर उठी और बालटी को लात मारकर दूर जा खड़ी हुई। तय हुआ कि भेंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बांध दी जाए ओर फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, झूले की रस्सी उतारकर भेंस के पेर बांध दिए गए। पिछले दो पैर चाचाजी की चारपाई के पायों से बांध, अगले दो पेरों को बांधने की कोशिश जारी थी कि भेंस चोकननी हो गई। छूटकर जो भागी तो पहले चाचाजी समझे कि शायद कोई सपना देख रहे हैं। फिर जब चारपाई पानी के ड्रम से टकराई ओर पानी छलककर गिरा तो समझे कि आंधी तूफान में फसे हैं साथ में भूचाल भी आया हुआ है। फिर जल्दी ही उन्हें असली बात का पता चल गया ओर वह पलंग की दोनो पटियां पकड़े बच्चों को सांड की तरह छोड़ देने वालों को बुरा- भला सुनाने लगे। यहां बड़ा मजा आ रहा था। भेंस भागी जा रही थी ओर पीछे - पीछे चारपाई ओर उस पर बिल्कुल राजा इन्द्र की तरह बैठे हुए थे चाचाजी। ओहो! एक भूल ही हो गई यानि बछड़ा तो खोला ही नहीं, इसलिए तत्काल बछड़ा भी खोल दिया गया। तीर निशाने पर बेठा ओर बछड़े की ममता में व्याकुल होकर भैंस ने अपने खुरों को ब्रेक लगा दिए। बछड़ा तत्काल जुट गया। दुहने वाले गिलास-कटोरे लेकर लपके क्‍यों बाल्टी तो छपाक से गोबर में जा गिरी थी। बछड़ा फिर बागी हो गया। कुछ दूध जमीन पर ओर कपड़ों पर गिरा। दो-चार धारें गिलास-कटोरों पर भी पड़ गई बाकी बछड़ा पी गया। यह सब कुछ कुछ मिनट के तीन-चोथाइ में हो गया। घर में तृफान उठ खड़ा हुआ। ऐसा लगता था, जेसे सारे घर में मुर्गियां, भेड़ें, टूटे हुए तसले, बालटियां, लोटे, कटोरे ओर बच्चे थे। बच्चे बाहर किए गए। मुर्गियां बाग में हंकाई गई। मातम-सा मनाती तरकारी वाली के आंसू पोंदे गए ओर अम्मा आगरा जाने के लिए सामान बांधने लगी। “या तो बच्चा-राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो। नहीं तो में चली मायके,” अम्मा ने चुनोती दे दी, “मुए बच्चे हें कि लुटेरे...” ओर अब्बा ने सबको कतार में खड़ा करके पूरी बटालियन का कोर्ट मार्शल कर दिया। “अगर किसी बच्चें ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस, रात का खाना बंद हो जाएगा।” ये लीजिए! इन बुजुगों को किसी करवट शांति नहीं। हम लोगों ने भी निश्चय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, हिलकर पानी भी नहीं पिएगे।




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