साबुन | SABUN

SABUNDWEJENDRANATH MISHR by द्विजेन्द्रनाथ मिश्र - DWIJENDRA NATH MISHRAपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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द्विजेन्द्रनाथ मिश्र - DWIJENDRA NATH MISHRA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“देखें, जली हुई का स्वाद देखें। श्याम ने कढ़ाई पीछे को करके कहा-“'यह तुम्हारे खाने के काबिल नही है। लो दाल और ले लो।” बड़े लड़के ने कहा मैं भी दाल और लूँगा। कक म श्यामा ने उसके आगे सरकाकर कहा-“ले, दाल ले ! हे लड़का पतीली में झाँंककर बोला-“कहाँ है की दालः “दाल नही है। अब तू मेरा सिर खा ले, पेटू !”..... 1 बड़ा भतीजा बाहर दरवाजे पर खड़ा था। उसके स्कूल की आज छुट्टी _ 9 थी। कालेज जाने लगा, तो सुखदेव उसका हाथ पकड़कर ,खींचता हुआ , ८ 4 ले गया जल्दी-जल्दी बड़ी दूर तक। चार मिनट बाद लड़के ने दही का +» ह कल्हड़ माँ के आगे ला धरा। 47 एक 9 & कमा उसी जली तरकारी से रोटी खाये जा रही थी ! दह 231] हे अचरज से पूछा कहाँ से ले आया, रे? बर्थ ही 5 लड़का बाहर को भागता-भागता बोला-“चाचाजी ने दिया है। ड हर पड़ोस में रहने वाली पंजाबिन बच्चों के कपड़े बहुत सस्ते सीती थी। उसके आदमी को श्यामा ने पति से आग्रह कर करके, उन्ही के आफिस | (६ में लगवा दिया था। सुखदेव अपने सब कपड़े जे. बी. दत्ता कम्पनी में 9 सिलवाता था। बच्चों की कमीजें भी पिछली बार उसने वही सिलवाई। वे | सब कमीजें पहनने पर बच्चों को छोटी हुई, और सिलाई लगी इतनी। # | देवर-भाभी में एक द्वन्द्र युद्ध हो गया। फलत: इस बार बच्चों की कमीजें ॥ पजाबिन को दीं श्याम ने। सिलाई ऐसी सुघड़ हुई, कि देखकर दिल खुश #£ &3 हो गया। खुश होकर, उसके आगे एक रुपया धरा और हैंसकर बोली-“'अबकी बार मुन्ना के बाबू की कमीजें भी तुम्हीं से सिलवाऊँगी, 7 ” बहिन ! | “जरूर जरूर बहिनजी ! मुझी से सिलवाना बाबूजी की कमीजें। यह | | रुपया रख लो, बहिनजी, यह रुपया रख लो।” श्याम ने कहा-“नही बहिन, सिलाई तो तुम्हें लेनी ही होगी।”'




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