संस्कृत-पाठशाला में प्रसाद | SANSKRIT PAATHSHALA MEIN PRASAD

Book Image : संस्कृत-पाठशाला में प्रसाद  - SANSKRIT PAATHSHALA MEIN PRASAD

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

श्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl

No Information available about श्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl

Add Infomation AboutShrilal Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8/11/2016 'हेम कुंभ, ले उषा सबेरे...।' पंडितजी ने न केवत्र मूल के अर्थ को, बल्कि मूल्र पाठ को भी अपने ढंग से तोड़-मरोड़ कर प्रसाद की इतना बखान किया था। संस्कृतज्ञ होने के नाते अशुद्ध अर्थ को 'विकल्प' बताना और अशुद्ध पाठ को 'पाठांतर' कहना उनका अपना अधिकार है। अत: उस अधिकार का पूर्ण प्रयोग करके वे प्रसाद के साहित्य की गरिमा और इस देश की महिमा 'गायंति देवा:' की भूमिका में समझाते रहे। पर प्रसाद की काव्यात्मा वहाँ अधिक न ठहरी। वह पंडितजी दूवारा की गई काव्य-मीमांसा का रस ले कर पछताती हुई यह कह कर अंतर्हित हो गई : मैंने भ्रमवश जीवनसंचित मधुकारियों की भीख लुटाई। शीर्ष पर जाएँ 44




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now