संस्कृत-पाठशाला में प्रसाद | SANSKRIT PAATHSHALA MEIN PRASAD
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
133 KB
कुल पष्ठ :
4
श्रेणी :
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श्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8/11/2016
'हेम कुंभ, ले उषा सबेरे...।'
पंडितजी ने न केवत्र मूल के अर्थ को, बल्कि मूल्र पाठ को भी अपने ढंग से तोड़-मरोड़ कर प्रसाद की इतना
बखान किया था। संस्कृतज्ञ होने के नाते अशुद्ध अर्थ को 'विकल्प' बताना और अशुद्ध पाठ को 'पाठांतर' कहना उनका
अपना अधिकार है। अत: उस अधिकार का पूर्ण प्रयोग करके वे प्रसाद के साहित्य की गरिमा और इस देश की
महिमा 'गायंति देवा:' की भूमिका में समझाते रहे। पर प्रसाद की काव्यात्मा वहाँ अधिक न ठहरी। वह पंडितजी दूवारा
की गई काव्य-मीमांसा का रस ले कर पछताती हुई यह कह कर अंतर्हित हो गई :
मैंने भ्रमवश जीवनसंचित
मधुकारियों की भीख लुटाई।
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