जिस लाहौर नइ वेख्या, ओ जमना हि नइ | Jis Lahore Nai Vekhya, Ao Jamana Hi Nai
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
असग़र वजाहत - Asagar Wajahat
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अस्मतों के दिए बुझाए गए
आह तो खिलवतों के सरमाए
मजम-ए-आम में लुटाए गए
वक़्त के साथ हम भी ऐ नासिर
खार-ओ-ख़स की तरह बहाए गए।
(नासिर चुप हो जाते हैं)
अलीम : आजकल के हालात की तस्वीर उतार दी आपने।
पहलवान : ला चाय ला।
(अलीम चाय का कप पहलवान और नासिर के सामने रख देता है)
नासिर : (चाय की चुस्की लेकर पहलवान से) आपकी तारीफ़?
पहलवान : (फ़्र से) क़ौम का ख़ादिम हूं।
नासिर : तब तो आपसे डरना चाहिए।
पहलवान : क्यों?
नासिर : ख़ादिमों से मुझे डर लगता है।
पहलवान : कया मतलब।
नासिर : भई दरअलस बात ये है कि दिल ही नहीं बदले हैं लफ़्ज़ों के मतलब भी बदल गए हैं...
ख़ादिम का मतलब हो गया है हाकिम... और हाकिम से कौन नहीं डरता?
अलीम : (ज़ोर से हंसता है) चुभती हुई बात कहना तो कोई आपसे सीखे नासिर साहब!
नासिर : भई बक़ौल 'मीर'-
हमको शायर न कहो 'मीर' के हमने साहब
रंजोगम कितने जमा किए कि दीवान किया।
तो भई जब तार पर चोट पड़ती है तो नग्मा आप फटता है।
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