महके सारी गली गलिन्ब्त | MEHKE SAARI GALI GALINBT

MEHKE SAARI GALI GALINBT by निरंकार देव सेवक

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about निरंकार देव सेवक

Add Infomation About

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चित्रकार ने कहा-हो गया, आगे का तैयार। अब मुंह आप उधर तो करिये, जंगल के सरवार |। बैठ गया वह पीठ फिराकर, चित्रकार की ओर। चित्रकार चुपके से खिसका, जैसे कोई चोर।। बहुत देर तक आंख मूंदकर, पीठ घुमाकर शेर | बैठे-बैठे लगा सोचने, इधर हुई क्‍यों देर ।। झील किनारे नाव लगी थी, एक रखा था बांस। चित्रकार ने नाव पकड़कर, ली जी भरके सांस ।|। जल्दी-जल्दी नाव चलाकर, निकल गया वह दूर। इधर शेर था धोखा खाकर, झुंझलाहट में चूर |। शेर बहुत खिसियाकर बोला, नाव जरा ले रोक। कलम और कागज तो ले जा, रे कायर डरपोक ! ! चित्रकार ने कहा तुरत ही, रखिये अपने पास । चित्रकला का आप कीजिये, जंगल में अभ्यास ।। -रामनरेश त्रिपाठी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now