कुंती देवी का झोला | KUNTIDEVI KA JHOLA

KUNTIDEVI KA JHOLA by श्रीलाल शुक्ल - shreelal shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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86/11/2016 शीशा और एक कंघा। बड़े ने शीशे में मुँह देखा, रोब से आँखे मत्थे पर चढ़ा लीं। अब छोटे के हँसने की बारी थी, पर बड़े ने हँसने नहीं दिया। नीचे कागज में लिपटी हई कोई चीज थी। छोटे ने बड़ी दिलचस्पी से कहा, 'इसमें गृड़ होगा। 'तमंचा। बड़ा बोला और इस बार अपनी ही आवाज से सकपका गया। वे अंग्रेजी जानते होते तो समझ जाते कि वह बत्तीस बोर का एक छोटा-सा स्मिथ एंड बेसन रिवाल्वर है। इस्पात का नीला-सा खूबसूरत खिलौना। उन्होंने गाँव में एकाध बार देसी कारतूसी तमंचे देखे थे। पर वे बहुत बड़े और बदरंग होते है। यह सचमुच ही खिलौना-जैसा प्यारा और चिकना था। उनके मन में आतंक था, पर उसका चिकनापन उन्हें मजबूर कर रहा था। बड़े ने उसे कई बार बारी-बारी से दोनों हथेलियों में उलट-पुलट कर देखा। तमंचा चलाने की मुद्रा में उसका हत्था भी एक बार हथेली में पकड़ा। तब तक छोटे का धीरज जवाब देने लगा। उसने भी हाथ बढ़ा कर बड़े की हथेल्ियों में बँधे हए इस खिलौने को सहलाना शुरु किया। तभी तमंचे से एक गोली छटी और पता नहीं किधर गई। झरम्‌ट का सन्‍नाटा छिन्‍न-भिन्‍न हो गया। अचानक ऊपर के पेड़ों और झाड़ियों से सैकड़ों चिडियाँ चीखती हई निकली और चारों ओर उड़ चलीं। वे उन चिड़ियों को देख नहीं सकते थे पर उनकी विकत आवाजें, घबराहट और जड़ता के बावजूद उन्हें सुनाई पड़ रही थीं। ज्यादातर कौवे थे, उनसे भी ज्यादा तोते थे। रिवाल्वर उनके हाथ से नीचे गिर गया, उन्होंने एक-दूसरे के कंधे भींच त्रिए। अचानक बड़े ने कहा, 'उठ।' सबकुछ वहीं, जैसे का तैसा, छोड़ कर वे भागे। पर उसके पहले उन्हें कुछ देर पेट के बल घिसटना पड़ा। कोई दबाव था, जिससे कारण वे गाँव की ओर नहीं, बीहड़ की ओर भागे। झुरमुट पार करते-करते उन्हें दूर से अपने पीछे गोली चलने की आवाजें सुनाई दीं। वे झुके-झुके कुछ और तेजी से भागे और एक कम गहरे भरके में कुद गए। वहाँ उन्होंने रुक-रुक कर दागी जानेवाली गोलियों को कई आवाजें स॒नीं। वे टेढ़े-मेढ़े भरकों में भागते हए काफी देर भटकते रहे। उन्हें हर तीसरे कदम पर गोलियों की आवाज सन पड़ती और बार-बार उन्हें लगता कि अगली गोली उनकी पीठ में लगेगी। बिना कुछ सोचे-विचारे, टोटका जैसा करते हए अपनी हाफ पैंट की जेबों में भरी हुई घुँघची बीहड़ रास्ते में फेंकते गए। जब उनकी जेबें खाली हो गईं तब उन्होंने चैन की साँस ली। पर गोलियों की आवाजें भरकों में अब भी गूँज रही थीं। बड़ी देर तक लंबा चक्‍कर काट कर वे एक भरके से गाँव के दूसरे छोर पर निकले और सबसे पासवाली झोपड़ी में घुस गए। वहाँ उन्हें सुनने को गोलियाँ नहीं, गालियाँ मिलीं। जो बुड़ढा चारपाई पर सिकुड़ा पड़ा था गालियाँ खत्म करके अंत में बोला, 'भाग जाओ। चुपचाप घर में बैठो जा कर।' बदहवास चेहरे लिए, छिपे-छिपे एक से दूसरी दीवार का सहारा लेकर वे अपने घर पहुँचे। बाहर गलियारों में कोई न था। अंदर सब लोग दुबके बैठे थे। रुक-रक कर चलनेवाली गोलियों की आवाज यहाँ ज्यादा साफ सुनाई देती थी। सन्नाटा था, चिड़ियों ने चीखना बंद कर दिया था। थोड़ी देर में उन्हें दूर किसी मोटर की घरघराहट सुनने को मिली। एक बुजुर्ग ने कहा, 'पुलिस की दूसरी मोटर आई होगी।' बुजुर्गों की बातों से पता चला कि आज भी दोपहर में पुलिस गाँव में आई थी। पर लौटते-लौटते उनका दस्ता जंगल के पास अचानक रुक गया। उन्होंने जंगल की तीन तरफ से घेराबंदी कर ली है। पुलिस का एक जत्था अब बीहड़ की तरफ बढ़ रहा है। शुरू में एक गोली चला कर डाकू जंगल में चुपचाप घात लगाए बैठे हैं। लगता है कि मुठभेड़ घंटों चलेगी। जब डाकू भी जवाबी गोलियाँ चलाएँगे तो घमासान लड़ाई होगी। पर पुलिस को उन्हें अँधेरा होते-होते मार लेना चाहिए नहीं तो मुश्किल होगी। अँधेरा हो गया तो डाकू बीहड़ में कूद जाएँगे। छोटे ने यह सब बड़े ध्यान से सुना। वह कुछ कहना चाहता था पर बड़े ने हाथ दबा कर उसे रोक दिया। कुछ देर में एक-दूसरे को चोर निगाहों से देखते हुए वे दहलीज पार करके अंदर आँगन में चले आए। शीर्ष पर जाएँ 44




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