हमें कैसे पता चला कि पृथ्वी गोल है | Hame Kaise Pata Chala ki Prithvi Gol Hai
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 KB
कुल पष्ठ :
13
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शायद पृथ्वी का जमीन वाला हिस्सा मध्य में था और यह जमीन चारों ओर समुद्रों से घिरी थी।
लंबी-लंबी यात्राओं के बाद मुसाफिर अक्सर किसी समुद्र या महासागर के तट पर ही पहुंचते थे। प्राचीन
काल में लोग बहुत लंबे समुद्री सफर नहीं करते थे। शायद इसी कारण वे कभी पृथ्वी की किनार तक
नहीं पहुंच पाए।
इस हालत में समुद्रों का पानी पृथ्वी की किनार से नीचे की ओर क्यों नहीं गिरता था?
शायद पृथ्वी की किनार सभी ओर थाली जैसे ऊपर को उभरी थी, जिससे उसमें पानी ठहरा रहे।
पृथ्वी का आकार चपटी रोटी न होकर एक छिछले कटोरे जैसा हो सकता था।
इस हालत में पूरी पृथ्वी नीचे क्यों नहीं गिरती थी?
पृथ्वी को चपटा मानने में अभी भी काफी मुश्किलें थीं। सूर्य उदय और अस्त की समस्या सुलझने,
और आकाश को एक बड़ी गेंद मानने के बाद भी पृथ्वी को चपटा मानने में तमाम दिक्कते थीं।
अगर पृथ्वी चपटी नहीं थी, तो फिर उसका आकार क्या था?
रात्रि आकाश में चमकने वाली चीजों में अधिकांश तारे थे। तारे दिखने में प्रकाश के बिल्कुल छोटे
बिंदु लगते थे। इसलिए प्राचीन दार्शनिक उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते थे।
आकाश में दो ऐसे भी पिंड थे जो बिल्कुल अलग छिटकती थे। वे थे - सूर्य और चंद्र।
सूर्य हमेशा आग के गोले जैसा दमकता था, परंतु चंद्रमा के साथ ऐसा नहीं था। चंद्रमा कभी प्रकाश
का पूरा गोला तो कभी आधा-गोला दिखता था। कभी-कभी वो पूरे और आधे गोल के बीच के आकार
का दिखता था। कभी चंद्रमा हंसिए के आकार का पतला गोल वक्र नजर आता था।
यूनानियों ने चंद्रमा का गहन अध्ययन किया। उन्होंने चंद्रमा की स्थिति को, सूर्य के सापेक्ष बदलता
हुआ पाया। उन्हें लगा कि चंद्रमा अपनी स्थिति के साथ-साथ अपना आकार भी बदलता था।
कभी-कभी पृथ्वी के एक ओर सूर्य और दूसरी ओर चंद्रमा होता। इस स्थिति में चंद्रमा हमेशा प्रकाश
का संपूर्ण गोल दिखाई देता। सूर्य की किरणें पृथ्वी को पार कर चंद्रमा पर पड़ती थीं। इससे चंद्रमा का
पूरा गोल चेहरा खिल उठता था।
कभी-कभी जब सूर्य और चंद्रमा दोनों, पृथ्वी के एक ही ओर होते तो यूनानियों को चंद्रमा बिल्कुल
भी दिखाई नहीं देता था। तब सूर्य की किरणें चंद्रमा के उस भाग पर पड॒तीं जो पृथ्वी से दिखाई ही नहीं
देता था। चंद्रमा का जो भाग पृथ्वी से दिखता था उस पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता था। इसलिए चंद्रमा
दिखाई ही नहीं देता था।
प्राचीन दार्शनिक अपने अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे - सूर्य का अपना खुद का प्रकाश था
जबकि चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश न था। चंद्रमा इसीलिए दमकता था क्योंकि सूर्य उसे चमकाता था।
चंद्रमा, सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करता था।
प्राचीन यूनानियों ने 'ज्यामिति ” का अध्ययन भी शुरू किया था। “ज्यामिति' का चीजों के आकार से
संबंध होता है। उन्होंने चंद्रमा की चमकती विभिन्न कलाओं को गौर से देखा - अर्धचंद्र, हंसिए जैसे चंद्र
और अन्य आकृतियों का अध्ययन किया। उन्हें स्पष्ट लगा कि चंद्रमा की यह कलाएं - अलग-अलग
चमकने वाले आकार तभी दिखेंगे जब चंद्रमा का आकार एक गोल गेंद जैसा होगा।
फिर सूर्य का आकार कैसा होगा? सूर्य का प्रकाश सभी कोणों से चंद्रमा पर एक-जैसा पड़ता था। सूर्य
User Reviews
No Reviews | Add Yours...