बच्चों से बातचीत | BACHCHON SE BAATCHEET
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
गैरेथ बी० मैथ्यूज - GARRETH B. MATTHEWS,
पुस्तक समूह - Pustak Samuh,
सरला मोहनलाल - Saralaa Mohanlal
पुस्तक समूह - Pustak Samuh,
सरला मोहनलाल - Saralaa Mohanlal
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गैरेथ बी० मैथ्यूज - GARRETH B. MATTHEWS
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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सरला मोहनलाल - Saralaa Mohanlal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4. पनीर
एडिनबरा में आने के पहले साल में, बोस्टन में, अपनी वयस्क कक्षा को जो
पहली कथा मैंने सुनाई, वह इस प्रकार थी :
मैक्सीन : तुम्हें मालूम है ? पनीर घास का बनता है।
अध्यापक : तुम ऐसा क्यों कहती हो ?
मैक्सीन : क्योंकि पनीर, दूध का बनता है, और दूध, गाय देती है और
गाय घास खाती है। ह
अध्यापक : तुम पनीर खाती हो ?
मैक्सीन : हं।
अध्यापक : तो तुम भी घास की बनी हों।
गेक्सीन : नहीं, मैं तो आदमी हूं।
यह संवाद, एक अध्यापक और आठ साल की एक बालिका के बीच, कुछ
और लंबी बातचीत का एक आंश है। एमहर्स्ट नगर के मैसेच्यूसेट्स विश्वविद्यालय
के शिक्षा विभाग में किसी ने मुझे इस बातचीत से अवगत कराया था। मैंने
उसे कुछ संक्षिप्त करके, अपनी वयस्क कक्षा को सुनाया और आधे विद्यार्थियों
से कहा कि वे मैक्सीन की इस बातचीत को आगे बद्मते हुए, एक निबंध लिखें।
मुझे जो निबंध प्राप्त हुए, उनमें से कुछ गंभीर और उपदेशात्मक थे। कुछ
में अच्छे परिहास का पुट था। कुछ थोंड़े औपचारिक थे और कुछ अन्य, अधिक
स्वतंत्र और कल्पनापूर्ण थे (यद्यपि मैं ने 'इच्छा” अध्याय में, अपनी इस कक्षा
के विद्यार्थियों पर कुछ फल्तियां कस दी हैं, पर वास्तव में मुझे इन्हें पढ़ाने में
बहुत आनंद आता था)।
निबंध लिखने वालों में से अधिकांश ने इसी विचार को महत्व दिया था _
कि मैक्सीन के अनुसार मनुष्यों का संसार, जानवरों से अगल होता है। कुछ
यह कहना चांहते थे कि मैक्सीन यह बात समझते थे कि मनुष्यों की प्रकृति
भी जानवरों जैसी होती है और हम वास्तव में मनुष्य के रूप में, पशु हैं। कुछ.
29
पनीर
मैक्सीन के माध्यम से यह खोज करना चाहते थे कि मनुष्यों में ऐसी क्या खास
बात है जो जानवरों में नहीं पाई जाती ।
मैक्सीन की बातचीत के अंतिम अंश के बारे में इन वयस्कों की चाहे
जो राय रही हो, परंतु वे इसमें सभी एकमत ये कि मैक्सीन के कथन के प्रारंभिक
अंश में तर्क का बिलकुल गलत प्रयोग किया गया है। कुछ ने कहा है कि
वे चाहते थे कि मैक्सीन को उसकी गलती बताएं परंतु उन्हें समझ में नहीं
आया कि वे इसे कैसे करं। एक ने यह आशा व्यक्त की कि शायद मेरी कक्षाओं
में शिक्षण से उसे यह समझ में आ जाए कि मैक्सीन की गलती कैसे ढूंढे और
उसे कैसे ठीक करें। अन्य विद्यार्थियों का कहना था कि उन्हें यह तो पता
चल रहा था कि कहीं गलती हुई है पर वे उस गलती को पकड़ नहीं
पा रहे थे। फ
मेरी कक्षा के कुछ सदस्यों का बिचार था कि मैक्सीन के अनुसार यदि
'क', 'ख' को खाता है, और यदि 'क' मनुष्य नहीं है तो “'क', ख'” बना
है। सिद्धांत यह है कि यदि आप मनुष्य नहीं है, त्तो आप वहीं हैं जो आप
खाते हैं। मैक््सीन के इस तर्क में यह त्रुटि है कि मैक्सीन कभी यह नहीं कहती
कि गाय, घास की बनी है। वह यही कहती है कि पनीर, धास का बनता
है। उसका कारण वह यह बताती है कि पनीर, दूध का बनता है। दध, गाय
से मिलता है और गाय, घास खाती है। अतः हमारे पास ये चार कथन हैं:
1. गाय घास खाती है।
2. गाय दूध देती है।
3. दूध का पनीर बनता है।
4. पनीर, घास का बनता है।
हम ऐसा क्यों सोचें कि अंतिम कथन-अर्थात पनीर घास का बनता है-अन्य
कथनों का परिणाम है। मेरे खयाल से इसका उत्तर यही है कि पहले दो कथनों
के फलस्वरूप एक बीच का कथन और निकलता है :
25 दूध घास का बनता है।
इसके साथ फिर (3) अर्थात दूध का पनीर बनता है-जोड़ देने से, सकर्मकता
के सिद्धांत के अनुसार यह निष्कर्ष निकलेगा कि (4) घास का पनीर
बनता है।
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