आधी रात - रेल की सीटी | AADHI RAAT - RAIL KEE SEETI

AADHI RAAT -  RAIL KEE SEETI by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharatiपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 साँवले पाँवों में मोटा महावर। हाथों में चूड़े। सहसा वह मुड़ती है। चेहरा साँवला है। पर बेहद सलोना। आँखें रोती- रोती सूज गई हैं। जब तक उसका मुँह दीवार की ओर था, कमरे का वातावरण बड़ा ही हलका और भोंडा-सा लग रहा था। उसके मुँह इधर करते ही कमरे में जैसे करूणा भर-भर उठी, विदाई के लोकगीतों की करुणा : मोरे पिछवरवाँ लवँग, केर बिरवा, महकड़ बड़े भिनसार। मोरे पिछवरवाँ लवँग केर बिरवा, इलग बिलग गई डार? (मेरे घर के पिछवाड़े लौंग का बिरवा... बड़े सवेरे महकता है। पिछवाड़े लौंग का बिरवा... इसकी एक डाली दूसरी डाली से बिछुड़ गई।) अकस्मात वह आती हुई दीख पड़ती है। तेजी से जरूर रोई है। अच्छा चाय पी ली तुमने। सुनो। इसी शहर की लड़की है। जानते हो इम्फाल में ब्याही है। अब कभी नहीं लौंटेगी। उसका गल्रा रँधा है। मैं पैसे चुकाकर चल देता हूँ | जानता हूँ न उसे। यहीं चाय की स्टाल पर खड़े-खड़े आँसू टपकाने लगेगी। दुनिया भर का दर्द तो उसी के सर माथे है न? लड़की वह इम्फाल में ब्याही है। रोएँगी आप। वह मेरा हाथ पकड़कर जैसे खींचे ले जा रही है। फिर वही खुली प्लेटफॉर्म रात हो चुकी है। हम लोग बढ़ते जा रहे हैं। एक बेंच आई। बैठोगे यहाँ? और वह मुझे बिठा लेती है। बेंच के पास का लैम्पपोस्ट खामोश जल रहा है। अँधेरे के अथाह समुद्र में जैसे वह एक छोटा सा द्वीप है। हम दोनों को ज्वार वहाँ फैंक गया है। वह गरदन घुमाकर चारों ओर देखती है। फिर सिर झुकाकर कहती है : वही प्लेटफार्म तो है यह? जहाँ से ...मेरी विदा हुई थी। तुम्हें क्या याद होगा। तुम तो थे ही नहीं। उस दिन भी कोई काम निकल आया था न तुम्हें, छोड़ कर चले गए थे न? मैं चुप। सुनो , वह फिर बोलती है: तुम्हें किसी ने भी ममता नहीं दी। क्यों? ॥॥॥ दी होती, तो तुम भी दूसरों को देते न? और उसके बाद दो हिचकियाँ और कंधे पर गरम-गरम आँसू की एक बड़ी- सी बूँद। मुझे होश नहीं था कि कब उसका स्वर गहरा गया था, कब उसका माथा मेरे कंधे पर आ टिका था... सुनो। वह रुंधते हुए रुक-रककर बोल रही है : जिसे लाना उसे ममता से भर देना। अंग-अंग, पोर-पोर। कहीं भी वह रीती न रहे। ममता से छा देना उसे। न..न.. मैं जानती हूँ तुम वैसी ममता दे सकते हो। मैं कहूँ कुछ पर मैं जानती हूँ। मैं जानती हूँ। तुम्ही वैसी ममता दे सकते हो, सिर्फ तुम्हीं। 4/6




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