आओ दूरबीन देखें | AAYO DOORBEEN DEKHEN

Book Image : आओ दूरबीन देखें  - AAYO DOORBEEN DEKHEN

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पावेल क्लुशान्त्सेव - PAVEL KLUSHANTSEV

No Information available about पावेल क्लुशान्त्सेव - PAVEL KLUSHANTSEV

Add Infomation AboutPAVEL KLUSHANTSEV

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

योगेन्द्र नागपाल - Yogendra Nagpal

No Information available about योगेन्द्र नागपाल - Yogendra Nagpal

Add Infomation AboutYogendra Nagpal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सकता है वह नीचे रह गया हो ? आओ नीचे देखे। पृथ्वी अपने स्थान पर है। उस पर बादल फैले हुए हैं, जैसे कि फर्श पर रूई के छोटे-छोटे टुकडे। लेकिन इस सब पर पृथ्वी और बादलों पद आसमानी रग का घना कुहासा- सा छाया हुआ है। अच्छा तो, नोला आकाश वहा है। वह हमारे से तोचे रह गया जद हम ऊपर उठ रहे थे तो हमे पता भी नहीं चला कब हमने उसे बेध दिया, उसे पार कर गये और अब “नीले आकाश से ऊपर” हैं। इसका मतलब यह हुआ कि नीला आकाश पृष्वी के बिल्कुल पास ही है, जैसे कि सुबह के समय दलदल पर छाया कोहरा। और यह नीला आकाश कोई इतना मोटा भी नहीं है-यही कोई तीस किलोमीटर, बस। इसे बेधता भी कोई मुश्किल काम नहीं है। हां, कोई छेद नहीं बचा रहता। घुए या कोहरे में कैमा छेद हो सकता है? सो, अब हमे पता चल गया कि आकाद दो हैं, दिल्लुल भिल्त-भिन्‍न। एक आममानी रग का है, हमारे पास ही है और दूसरा उससे आये है-काले रग का। देखा ? हम सोच रहे थे कि एक ही “छत” है जो दिन और रात को रग बदलती रहती है। अब तो हमे यह पता चल गया है कि काली “छत ” दित को भी काली होती है। और वह रात-दिन सदा अपने स्थान पर रहती है। और तारे भी उस पर सदा चमकते रहते हैं। बस दिन में यह मीले आकाश के पीछे छिपा रहता है। लेकिन नीला आकाश रात को कहा गुम हो जाता है? कहीं गुम नहीं होता। वह तो बस पारदर्शी हो जाता है, अदृश्य हो जाता है। नीला आकाश तो हवा ही है। वही हवा जिससे हम-तुम सास लेते हैं, पक्षी और विमान उड़ते समय पस्ो से जिस पर टठिके होते हैं। हवा पारदर्शी है, किंतु पूरी तरह नहीं। उसमे सदा काफी घूल होती है। जब अधेरा होता है तो यह घूल दिल्लायी नहीं देती। रात को हमे यह नजर नहीं आती , सो हमें लगता है कि हमारे ऊपर हवा है ही नहीं। दिन में हवा पर सूरज का प्रकाश पडता है। हवा में उड़ता घूल का हर कण छोटी-सी चिगारी की त्तरह चमकने लगता है। हवा धुधली हो जाती है। जरा यह याद करो कि अधेरे कमरे मे आती सूरज की किरण में हवा क्तिनी घुधली लगती है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now