एक थी बकरी | EK THI BAKRI

EK THI BAKRI by पारूल बत्रा - PARUL BATRAपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बीचों-बीच स्टेज पर तरह तरह की चीजें थीं। कहीं कुछ लोग हवा में झूल रहे थे तो कहीं साईकिल पर बीस लोग सवार थे। इसके बाद कुछ लड़कियों ने बड़े-बड़े छल्लों को गोल-गोल घुमाना शुरू किया। उन्हें देखते-देखते बकरी का सिर भी गोल-गोल घूमने लगा। अब वे लड़कियां उन बड़े-बड़े छल्लों में से कूद कर निकल रहीं थीं। बकरी अपनी जगह पर बेहद उत्साहित हो गई। उसके कान सीधे खड़े हो गए और वह अपने खुरों के नीचे जमीन कुरेदने लगी। 'भई वाह! यह तो मैं भी कर सकती हूं।' बकरी ने आव देखा ना ताव और बीचों-बीच दौड़ लगा दी | इसके पहले कि कोई कुछ समझ पाए कि माजरा आखिर है क्या? वह तीन छल्लों के अंदर से कूद कर निकल गई। लोग और जोर-जोर से तालियां बजाने लगे। स्टेज पर खड़े लोगों को यह पसंद नहीं आया। कुछ लोग बकरी को पकड़ने के लिए भागे। बकरी तब तक वहां से चंपत हो चुकी थी। बकरी ने देखा कि चहल- पहल वाली जगह पर एक आदमी जमीन पर बैठा था और .. चैक ' उसके पास हीं जमीन पर कोई जी हक ँ छोटी-सी गोल चीज़ रखी थी। . अं 7५ आते-जाते लोग रुक कर उस पर खड़े होते, नीचे झांक कर




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