विज्ञान और उन्मुक्त्तता | VIGYAN AUR UNMUKTATA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1016 KB
कुल पष्ठ :
24
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
दामोदर धर्मानंद कोसांबी - Damodar Dharmananda Kosambi
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इन सभी बातों को हम महज संयोग कहकर टाल दें, विज्ञान के
इतिहास को सौभाग्यपूर्ण संयोग की कडियां मान लें तो विज्ञान की
वैज्ञानिक पृष्ठभूमि को टालने जैसी हास्यापद स्थिति में हम पहुंच
जाएंगे। वैसे, विज्ञान खुद अपना इतिहास है और हमेशा संदेहास्पद
संयोगों के पीछे छिपे कारणों को ढूंढते हुए ही विज्ञान की हमेशा प्रगति
हुई है।
इससे आगे जाकर मैं यह भी कहना चाहूंगा कि ग्रीक विज्ञान
आधुनिक अर्थ के अनुसार विज्ञान था ही नहीं, फिर भले उसकी
कितनी भी तारीफ क्यों न की गई हो और नवजागरणकाल में उसकी
तर्काधारित विधियों से भले चाहे जितनी प्रेरणा ली गई हो, था तो वह
छलद्यविज्ञान ही। खोजों से निकली तकनीक के सहारे सभी तथ्यों को
युक्ति में बांधना ग्रीक विज्ञान का उद्देश्य था। वह भी एक सामाजिक
अनिवार्यता थी, क्योंकि तब के वर्गीकृत समाज में गुलाम काम करते
थे और उनका अस्तित्व प्राकृतिक नियमों के अनुसार सही माना गया
था- एक ऐसी अनिवार्यता जिसका प्रतिबिंब उस समय के वैज्ञानिक
दृष्टिकोण में देखा गया।
इस तरह, यह कल्पना निराधार साबित होती है कि विज्ञान
समस्याओं के बारे में अपने ही मन के किसी कोने में केवल वैज्ञानिक
तरीके से सोचने वाले केवल कुछ एक प्रतिभाशाली व्यक्तियों की
उपज है। हर समाज में और हर युग में प्रतिभाशाली व्यक्ति होते हें
लेकिन जिस तरह विचार के लिए वे भाषा का चुनाव करते हैं, उसी
तरह उनकी प्रतिभा का उपयोग भी बहुत कुछ उस समय के वातावरण
पर निर्भर करता है। बिना हिले-डुले रहना जितना शरीर के लिए
असंभव हे उतना ही बिना विचारों के रहना मन के लिए असंभव हे।
भारत में आज भी ऐसे लोग हैं जो शंकर और रामानुज के दर्शन के
सापेक्ष गुणों के बारे में चितन करते हैं। हालांकि इन विचारों के सहारे
इन दोनों संस्थापकों की तरह निपुणता हासिल करने की उनकी मंशा
नहीं होती। मैं अगर न्यूटन के प्रयोगों को दोहराऊं तो मुझे उनमें
सफलता मिलेगी, वही परिणाम हासिल होंगे लेकिन, निश्चय ही मुझे
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