नदी प्यासी थी | NADI PYASI THEE

NADI PYASI THEE by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharatiपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 शीला राजेश शीला पद्मा राजेश राजेश पद्मा राजेश पद्मा शीला राजेश शीला पद्मा और दर्द के बावजूद इसलिए जिन्दा है कि वह सौन्दर्य और जीवन की खोज करे, उसकी रक्षा करे, उसका निर्माण करे... और सौन्दर्य के निर्माण के दौरान वह खुद दिनों-दिन सुन्दर बनता जाय। अगर कोई नहीं है उसके साथ तो भी वह सौन्दर्य का सपना, वह ईश्वर के साथ है। उसे आगे बढ़ना ही है... यही जिन्दगी के माने हैं। इसलिए मैं फिर जिन्दगी में वापस लौट आया कि क्रूरता और कमजोरी के सामने हारूँगा नहीं, मरूँगा नहीं, सौन्दर्य का सृजन करूँगा और सुन्दर बनूँगा। जिन्दगी बहुत प्यारी है, बहुत अच्छी है, और आदमी को बहुत काम करना है। और उस लड़के का क्या हुआ? उसे रिलीफ की नाव ले गई। मैं इधर आ रहा था तो शंकर भड़या मिल गए। दूध ठंडा हो रहा है पी लो! मैं फल ले आऊँ। [जाती है।] तो अब आप जा क्यों रहे हैं? लीजिए दूध पीजिए। [मुँह से गिल्लास त्रगा देती है] [पी कर] मैं जा रहा हूँ इसलिए कि मेरी जगह वहीं है जहाँ कुरूपता और क्रूरता है, जहाँ मेरे सपने टूटे हैं; क्योंकि वहीं मुझे लड़ना है। वहीं प्यार बिखेरना है, वहीं निर्माण करना है। मैंने जीवन का सत्य पाया है और उसे ले कर कामिनी के पास जाऊँगा, फिर सारी दुनिया के पास और अगर कोई नहीं मित्रता तो अकेले, बिल्कुल अकेले चलूँगा, लेकिन हारूँगा नहीं। [पद्मा चुपचाप खिड़की के बाहर देखती है और आँचल से आँसू पोंछती है। राजेश उठ कर उसके पास खड़ा हो जाता है। सिर पर हाथ रखता है।] पद्मा! यह मोह गलत है। मुझे तो जाना ही है पद्मा! लेकिन तुम मेरी बात समझो, हर चीज का सौन्दर्य पहचानो, उसे प्यार करो। मेरी बात मानोगी? मैंने कभी टाली है आपकी बात? देखो पद्मा, कृष्णा को तुम्हारी जरूरत है। मैंने भी आज यही सीखा और तुम्हें भी यही कहूँगा कि दूसरों की जरूरत के लिए जिन्दा रहो, अपने लिए नहीं। तुमने उसे प्यार किया है मुझे नहीं। मुझसे तो तुम केवल मुग्ध रही हो। एक बौद्धिक सम्मोहन मात्र! समझी! [पद्मा सिसकती है| छि:! ऐसा नहीं करते पगली! उससे समझौता कर लो। उसके पास भाषा नहीं मगर हृदय बहुत बड़ा है! बहुत सुकुमार! उससे समझौता कर लेना। फिर अपने ब्याह में बुलाओगी हमें? बोलो! [रुंधे गले से| हाँ... [शीला फल लाती है।] क्या सचमुच अभी जाओगे राजेश? हाँ भाभी! पद्मा, जल्दी से अटैची ठीक करो... भाभी! ऊपर हमारे कपड़े पड़े होंगे। अभी लाई। [जाती है। राजेश चुपचाप बैठा है। बाहर कोई बड़े दर्दनाक स्वरों में वही गीत गाता है- 'हा55य बादढ़ी 55 नदिया5५'...] [अटैची सम्हालते हुए] क्या सोच रहे हैं आप! जो आप कह रहे हैं, वही होगा। सचमुच मैंने कृष्ण से बहुत कठोर व्यवहार किया है। मैं उनसे क्षमा माँग लूँगी। मैं उन्हें समझा लूँगी। 1617




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