दुक्ख्म-सुक्ख्म | DUKKHAM SUKHHAM

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ममता कालिया - Mamta Kalia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/29/2016 संसार में ऐसे लोग बहुत कम होंगे जो भोजन के समय कलह करते हों ख़ासकर उससे जिसके कारण चूल्हा जलता है। पर लाला नत्थीमल को भोजन के समय भी चैन नहीं था। उनके परिवार का नियम था कि दुपहर में सब बारी- बारी से रसोई में पट्टे पर बैठकर खाना खाते। माँ चौके में चूल्हे की आग पर बड़ी-बड़ी करारी रोटी सेकती और थाली में डालती जाती। पहली-दूसरी रोटी तक तो भोजन का कार्यक्रम शान्तिपूर्वक चलता, तीसरी रोटी से पिता मीनमेख निकालनी शुरू कर देते। रोटी देखकर कहते, जे ठंडी आँच की दिखै। माँ चूल्हे में आग तेज़ कर देतीं। अगली रोटी बढिय़ा फूलती। वे उनकी थाली में रोटी रखती कि वे झल्ला पड़ते, देखा, हाथ पे डारी है, मेरौ हाथ भुरस गयौ। माँ कहती, कहाँ भुरसौं है, छुऔ भर है। बुरा-सा मुँह बनाकर वे रोटी का कौर मुँह में डालते, तेज आँच की है। किसी दिन यह सब न घटित होता फिर भी उनका भोजन बिगड़ जाता। रोटी का पहला कौर मुँह में डालते ही वे कहते, ऐसो त्गे इस बार चून में मूसे की लेंड़ पिस गयी है। माँ उत्तेजित हो जातीं, कनक का एक-एक दाना मैंने, भग्गो ने मोती की तरह बीना था, लेंड़ कहाँ से आ गयी। पिता कहते, सैंकड़ों बोरे अनाज पड़ा है, मूस और लैंड की कौन कमी है। माँ हाथ जोड़ देतीं, अच्छा-अच्छा, औरन का खाना खराब मति करो। जे कहो तुम्हें भूख नायँ। पिता मान जाते, मार सुबह से खट्टी डकार आ रही हैं। ऐसौ कर, नीबू के ऊपर नून-काली मिर्च खदका के मोय दे दे। रात की ब्यालू संझा को ही बनाकर चौके में रख दी जाती। दुकान बढ़ाने तक पिता इतने थक जाते कि सीधे खड़े भी न हो पाते। बैठे-बैठे घुटने अकड़ जाते। बाज़ार में उनकी साख अच्छी थी, कड़वी जिहव और कसैले स्वभाव के बावजूद। मंडी के आदतियों में उन्होंने 'कैंड़े की बात' कहने की ख्याति अर्जित की थी। उनके रुक्‍्के पर विक्टोरिया के सिक्के जितना मंडी में ऐतबार था। दिये हुए कौल से वे कभी न हटते। इन्हीं वजहों से उन्हें गलला व्यापार समिति का सदस्य चुना गया था। अग्रवाल पाठशाला की प्रबन्ध-समिति में वे पाँच साल शामिल रहे। वे जानते थे कि परिवार के नेतृत्व मैं वे कुछ ज्यादा कठोर हो जाते हैं पर उस दौर में सभी घरों के बच्चों के लिए ऐसा ही माहौल था। बच्चों को चूमना, पुचकारना, बेटा बेटा कहकर चिपटाना बेशर्मी समझा जाता। मान्यता यह थी कि लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं। सभी अपने बच्चों से, विशेषकर लडक़ों से, सख्ती से पेश आते और कभी अनुशासन की वल्गा ढीली न होने देते। इसी अनुशासन के तहत उन्होंने तब कार्रवाई की जब उनकी पत्नी ने उस दिन सगर्व घोषणा की, अब तो मेरा भी कमाऊ पूत हो गया है। उसे एक नहीं दो-दो नौकरी मित्र गयी हैं। पिता ने कहा, उसे का ठेठर में नौकरी मित्र गयी है या सर्कस में। बड़ी आयी कमाऊ पूत की माँ। कवि ने माँ को वहाँ से हटाने की कोशिश की, माँ तुम क्‍यों उल्लझ्नती हो इनसे। 1626




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