अंधा युग | ANDHA YUG
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
275 KB
कुल पष्ठ :
81
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वह संजय भी
इस मोह-निशा से घिर कर
है भटक रहा
जाने किस कंटक-पथ पर
(पर्दा उठने पर वनपथ का दृश्य | कोई योद्धा बगल में अस्त्र रख कर वस्त्र से मुख ढाँप सोया है। संजय का प्रवेश)
संजय-
कृतवर्मा-
संजय-
भटक गया हूँ
मैं जाने किस कंटक-वन में
पता नहीं कितनी दूर हस्तिनापुर हैं
कैसे पहुँचूँगा में?
जाकर कहूँगा क्या
इस लज्जाजनक पराजय के बाद भी
क्यों जीवित बचा हूँ में?
कैसे कहूँ में
कमी नहीं शब्दों की आज भी
मैंने ही उनको बताया है
युद्ध में घटा जो-जो,
लेकिन आज अन्तिम पराजय के अनुभव ने
जैसे प्रकृति ही बदल दी है सत्य की
आज कैसे वही शब्द
वाहक बनेंगे इस नूतन-अनुभूति के ?
(सहसा जाग कर वह योद्धा पुकारता है - संजय)
किसने पुकारा मुझे?
प्रेतों की ध्वनि है यह
या मेरा भ्रम ही है?
डरो मत
मैं हूँ कृतवर्मा!
जीवित हो संजय तुम?
पांडव योद्धाओं ने छोड़ दिया
जीवित तुम्हें ?
जीवित हूँ |
आज जब कोसों तक फैली हुई धरती को
पाट दिया अर्जुन ने
भूलुंठित कीरव-कबन्धों से,
शेष नहीं रहा एक भी
जीवित कीरव-वीर
सात्यकि ने मेरे भी वध को उठाया अस्त्र;
अच्छा था
में भी
यदि आज नहीं बचता शेष
किन्तु कहा व्यास ने मरेगा नहीं
संजय अवध्य है'
कैसा यह शाप मुझे व्यास ने दिया है
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