मुसीबत का साथी | MUSIBAT KA SAATHI

MUSIBAT KA SAATHI by नमिता सिंह - Namita Singhपुस्तक समूह - Pustak Samuhसर्गेई मिखालोव - SERGEI MIKHAIKOV

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सर्गेई मिखालोव - SERGEI MIKHAIKOV

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“क्यों परेशान होती हो?” खरगोश ने कहा, “उसे वहीं पड़े रहने दो, अगर किसी को जाना होगा तो वह उसके किनारे से जा सकता है।” और इस त़्रह चझ्नान उनके बिल्कुल सामने क॒छ दूरी पर पड़ा रहा। एक दिन खरगोश बगीचे से उछलते-कूदते हुए घर आ रहा था और भूल गया कि रास्ते में एक चट्टान पड़ा हुआ है। वह बुरी तरह लड़खड़ाकर गिर गया और उसकी नाक टूट गई । | व | रॉ /) | ५ । | / ' े रच “चलो, पत्थर को हटा दें,” उसकी पत्नी ने फिर कहा। “देखो, तुमने ख़ुद को कितना चोटिल कर लिया।” तो क्या! खरगोश ने कहा। “कोई ज्यादा चोट नहीं लगी हैं ।'




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