कोहकाफ का बंदी | KOHKAAF KA BANDI

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लियो टॉलस्टॉय -Leo Tolstoy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उँगलियों मक्खन में सनी हुई थीं। काला तातार खड़ा हो गया, झीलिन को एक ओर बिठाने को कहा, कालीन पर नहीं, नंगे फर्श पर। फिर से वह कालीन पर जा बैठा, मेहमानों को टिकियाँ और बूजा देने लगा। नौकर ने झीलिन को उसकी जगह पर बिठा दिया, खुद ऊपर के जूते उतारे, उन्हें दरवाजे के पास रखा, जहाँ दूसरों के जूते भी रखे हुए थे और मालिकों के पास तातारों ने टिकियाँ खा लीं। एक औरत आई, लड़की जैसी ही सलवार-कमीज पहने; सिर पर कसाबा बाँधे थी। वह मक्खन और टिकियाँ ले गई, लकड़ी की चिलमची और पतली टोंटी वाली सुराही लाई। तातार हाथ धोने लगे, फिर घुटनों के बल बैठ गए, हाथ जोड़े, चारों ओर फूंक मारी औ दुआ पढ़ी। आपस में बातें करने लगे। फिर मेहमानों में से एक तातार झीलिन की ओर मुड़ा और रूसी में बोलने लगाः “तुझे काजी मुहम्मद ने पकड़ा है,” लाल तातार की ओर इशारा किया, “और अब्दुल मुराद को दे दिया,” काले तातार की ओर दिखाया, “अब अब्दुल मुराद तेरा मालिक है।” झीलिन चुप बेठा रहा। अब्दुल मुराद बोलने लगा, बार-बार झीलिन की ओर दिखाता जाए और हँसता जाए, बोला : “उरूस सिपाही, अच्चा उरूस”। दुभाषिया कीहकाफ का बंदी 1 ६६५




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