गांधी ऐसे थे | GANDHI AISE THE

GANDHI AISE THE by पुस्तक समूह - Pustak Samuhविष्णु नागर - VISHNU NAGAR

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विष्णु नागर - VISHNU NAGAR

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“'शुएब, किसी ने मुझे कीमती दुशाला दिया है। देनेवाले ने . सोचा होगा कि करोड़ों लोगों का नेता इंग्लैंड जा रहा है। यह अंग्रेजों से बात करेगा। तब इन्हें बढ़िया दुशाला ओढ़कर जाना चाहिए। मगर कोई इसे खरीदना चाहे तो इसे बेच दो। उनसे जो रुपये मिलेंगे, वे गरीबों के काम आ जाएँंगे।!' [1 द उन दिनों गाँधी जी हरिजन कोष के लिए चंदा इकट्टा कर रहे थे। वे देहरादून पहुँचे | वहाँ औरतों ने अलग से कार्यक्रम रखा था। उसमें गाँधीजी को दो हजार रुपये की थैली भेंट की गई। उस मौके पर गाँधी जी ने भाषण दिया: ““मैं पैसे ही नहीं, जेवर भी लेता हूँ। सोने की अँगूठी देना हो तो तुम दे दो। गले की चेन हो तो दे दो | हाथ के कड़े हों तो दे दो। अपने मर्दों से मत पूछो । ये तो तुम्हारा अपना धन है। उनसे पूछने की क्‍या ज़रूरत ? इतना कहकर गाँधी जी मंच से नीचे आ गए। उन्‍होंने औरतों के सामने हाथ फैला दिए। फिर तो इधर से एक औरत कहती-' महात्मा जी यह ले लो।' उधर से दूसरी औरत कहती-' महात्मा जी यह ले लो। धक्का-मुक्की होने लगी। एक औरत कह रही थी:''ऐ महात्मा, ये इकन्नी तो ले जा।”! गाँधी जी ने कहा:''ला दे।!! उन्होंने इकन्नी ले ली। फिर गाँधी जी ने उस औरत से कहा: “अभी तो तू मेरे पैर भी छएगी न।!”! 4 औरत ने कहा : “हाँ जरूर छूझँगी।'' गाँधी जी ने कहा : “तो जान ले इकन्नी और लूँगा।”' औरत ने ताना दिया : “महात्मा क्‍या किराये पर छुआता है पैर तू।'! गाँधी जी ने कहा : “हाँ, किराया देगी या नहीं ?”' . औरत ने एक और इकन्नी दी। गाँधी जी ने अपने पैर उसके सामने बढ़ा दिए। (17




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