दुनिया में पितृसत्ता का जन्म कैसे हुआ ? | DUNIYA MEIN PITRASATTA KA JANM KAISE HUA?

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आशुतोष भाकुनी - Aashutosh Bhakuni

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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युवल नोआह हरारी - YUVAL NOAH HARARI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करते हैं. क्या इनमें से कोई भी गतिविधि अप्राकृतिक है क्योंकि 60 करोड़ साल पहले हमारे कीड़ों जैसे पूर्वज अपने मुंह से ये काम नहीं करते थे? इसी तरह पंख अचानक से अपनी पूरी महिमा के साथ नहीं प्रकट हुए थे. वे उन अंगों से विकसित हुए जिनका काम कुछ और था. एक मत के अनुसार, लाखों साल पहले न उड़ सकने वाले कीड़ों के शरीर के उभरे हुए हिस्सों से पंख विकसित हुए. जिन कीड़ों से शरीर पर उभरे हुए हिस्से थे उनके शरीर का क्षेत्रफल अन्य कीड़ों से ज्यादा था, और इसलिए वे सूरज की ज्यादा रोशनी सोखकर ज्यादा गर्म रह पाते थे. धीमे क्रमिक विकास में उनके शरीर की ये सौर पटरियां बड़ी होती रहीं. वे भाग जो ज्यादा रोशनी सोखने के लिए अनुकूल थ- ज्यादा क्षेत्रफल, कम भार- संयोग से उन कीड़ों को उछलते वक्त ज्यादा उछाल भी देते थे. जिनके शरीर के उभार ज्यादा बड़े थे वे ज्यादा दूर तक उछल सकते थे. कुछ कीड़ों ने इन्हें हवा में कुछ दूरी तक तैरने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, और वहां से पंख विकसित होने में थोड़ा ही समय लगा जिससे कीड़े हवा में उड़ने लगे. तो अगली बार अगर कोई मच्छर आपके कान में भिनभिनाए, तो आप उसपर अप्राकृतिक गतिविधि का इल्जाम लगाना. अगर वह मच्छर अच्छा बर्ताव करती और ईश्वर की दी हुई चीजों से संतुष्ट रहती, तो वह अपने पंख केवल सूरज की रोशनी सोखने के लिए इस्तेमाल करती. इसी तरह एक से ज्यादा कार्यों में उपयोग लाना हमारे प्रजनन अंगों और यौन व्यवहार के लिए भी लागू होता है. सम्भोग शुरुआत में संतान पैदा करने के लिए विकसित हुआ और रिझाने के तरीके अपने संभावित साथी की योग्यता टटोलने के लिए. मगर बहुत से जानवर इन दोनों को कई सामाजिक कार्यों के लिए भी उपयोग में लाते हैं बजाय कि केवल संतान उत्पत्ति के लिए. जैसे चिम्पांजी सम्भोग को अपने राजनैतिक सम्बन्ध मजबूत करने, आत्मीयता बनाने और तनाव दूर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. क्या यह अप्राकृतिक है? इसलिए इसमें कोई तर्क नहीं है कि स्त्रियों का प्राकृतिक कार्य बच्चों को पैदा करना है, या समलैंगिकता अप्राकृतिक है. ज्यादातर कानून, नियम, अधिकार और दायित्व जो पुरुषत्व और स्त्रीत्व को परिभाषित करते हैं सिर्फ हमारी मानवीय कल्पना के परिणाम हैं नाकि कि जैविक वास्तविकता के. जैविक रूप से मनुष्य नर और मादा में विभाजित है. मनुष्यों में नर वह है जिसकी कोशिकाओं में एक » गुणसूत्र और एक ४ गुणसूत्र है; मनुष्यों में मादा वह है जिसकी कोशिकाओं में दो 2९ गुणसूत्र हैं. मगर 'पुरुष' और 'स्त्री' सामाजिक श्रेणियां हैं, जैविक नहीं. ज्यादातर मानवीय समाजों में पुरुष नर होते हैं और स्त्री मादा, मगर पुरुष और स्त्री की सामाजिक श्रेणियां अपने ऊपर बहुत सारा बोझ लिए हुए होती हैं जिनका जैविक श्रेणियों से न के बराबर लेना-देना होता है. एक पुरुष वह मनुष्य नहीं है जिसके पास »४ गुणसूत्र, अंडकोष और खूब सारा टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन है. बल्कि वह समाज द्वारा मनुष्यों के लिए रचे हुए काल्पनिक क्रम में एक ख़ास खांचे में ढला होता है. उसकी संस्कृति की कल्पनाएँ उसे कुछ ख़ास मर्दाना भूमिकाएं (जैसे राजनीती में हिस्सा लेना), अधिकार (जैसे वोट डालना), और जिम्मेदारियां (जैसे फ़ौज में सेवा देना) देती हैं. इसी तरह एक स्त्री वह मनुष्य नहीं है जिसके पास दो >९ गुणसूत्र, एक गर्भ




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