आँखों का मसीहा - अराविंद नेत्र अस्पताल | AANKHON KE MASIHA - ARAVIND EYE HOSPITALS

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पावी मेहता - PAAVI MEHTA

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की सेहत का कामकाज देखतो है। इंग्लैंड में एक साल में औसतन 5-लाख आंख की सर्जरी होती हैं, जबकि अराविन्द आई हास्पिटल अकेले 3 से 4 लाख आंख की सर्जरी करता है। इसका मतलब है कि विकासशील भारत में केवल एक संस्था, इंग्लैंड की कुल सर्जरियों की 60-प्रतिशत सर्जरियां अकेले करती है। जहां नेशनल हेल्‍थ सर्विस इस सेवा पर लगभग डेढ-बिलियन पाउंड खर्च करता है, वहां अराविन्द आई हास्पिटल उसका केवल एक-प्रतिशत खर्च करता है। कम-कीमत में लाखों सजर्री की चर्चा करते समय हमें उनकी गुणवत्ता की भी तुलना करनी चाहिए। अगर हम अराविन्द आर इंग्लैंड की संस्था, दोनों को सर्जरी के 20 मापदंडों पर तोलें, तो अराविन्द उन सभी मापदंडों पर खरा उतरता है या फिर इंग्लैंड से बेहतर करता है। हम बड़ी संख्या में, बेहद कम-लागत पर उच्च गुणवत्ता वाली सजर्रियां कर सकत हैं। नवाचार में दुनिया की तमाम कम्पनियां मेहनत-मश्क्कत कर रही हैं। पर इस नवाचार का मूल स्रोत्र क्या था? कुछ लोगों के अनुसार यह खुद की परिस्थितियों पर सृजनात्मक प्रतिबंध लगाने का नतीजा था। अगर आप अन्य कम्पनियों जैसे ही प्रतिबंध लगाएंगे तो आपके नतीजे भी उन्हीं के जैसे होंगे। शायद उनमें थोड़ा अधिक नवाचार का अंश हो। परन्तु अगर आप उन प्रतिबंधों को और कठिन बनाएं तो उससे खेल अधिक मुश्किल बनेगा। और तब आएगा खेल का असली मजा। लगता है डाक्टर वी और उनकी टीम ने ऐसा ही कुछ किया होगा, और तभी उनके उद्योग के इतने सुंदर परिणाम निकले। उन्होंने तीन नियम बनाए और वो संदेश शुरू से ही उनकी कम्पनी का अभिन्‍न अंग बना। नियम एकदम सरल थे। 1 हम किसी मरीज को वापस नहीं भेजेंगे। 2 हम उच्चतम गुणवत्ता कायम करने का प्रयास करेंगे। 3 हम आत्म-निर्भर बनेंगे। अराविन्द नेत्र अस्पताल ने यह तय किया कि वो जो कुछ भी करेगा वो गहरी संवेदना, गुणवत्ता और अपने साधनों से सम्पन्न करेगा। उनके द्वारा चुना पथ सरल नहीं था। उन्होंने अपने उसूलों से समझौता न करने की ठानी। इसे अराविन्द के संस्थपाकों को अपने मिशन को ईमानदारी से पूरा करने की मुक्ति और छूट मिली। उनके उसूल साधारण बिजनिस नियमों से बिल्कुल उल्टे थे। उन्होंने अपने काम में सामान्य बिजनिस के कोई भी दांव-पेंच फिट नहीं किए। उन्होंने अपने काम को निश्काम, सेवा-भाव से किया। अक्सर सेवा-भाव, लोगों के प्रति संवेदगा और दयालुता को, बिजनिस या धंधे से, जोड़ा नहीं जाता है। परन्तु अराविन्द नेत्र अस्पताल के केस में, यह सभी मूल्य उनके दिल के बहुत करीब थे। इन्हीं मूल्यों ने उन्हें प्रेरणा दी, हिम्मत दी और उन्हें आगे बढ़ाया। श्री अरबिन्द की पुस्तक 'सावित्री' में एक वाक्य है: “आंतरिक मूल्यों के आधार पर ही बाहरी योजना बनती है।' और इस संस्था के लिए यह 100-फीसदी सच था। डाक्टर वी ने अपने जीवन में बहुत सी डायरियां लिखीं। क्योंकि वे सभी एक डाक्टर की हस्तलिपि में थीं इसलिए उन्हें पढ़ना आसान नहीं था। पर मैंने उन सभी को पढा। इन डायरियां में से दो प्रमुख बातें निकलीं। पहली - हरेक इंसान की आंख को राशनी दो। और दूसरी - हरेक के साथ एक-समान व्यवहार करो। यह दो महत्वपूर्ण आकांक्षाएं, वास्तविकता और आध्यात्म के बीच, एक पुल का काम करती हैं। आपको लोगों की पीड़ा के निवारण के लिए एक ठोस सेवा-प्रणाली बनानी है। और यह कार्य सभी लोगों के लिए करना है - चाहें वो किसी वर्ग, धर्म समुदाय के क्‍यों न हों। अक्सर अस्पतालों को यह चुनना पड़ता है कि वो 1-प्रतिशत लोगों की सेवा करेंगे अथवा 99-प्रतिशत लोगों की।




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