तीन बच्चे | TEEN BACHCHE

TEEN BACHCHE  by अज्ञात - Unknownपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्क्के के के का के के कि को कि के के क क को कि मेरे साथ चलेगी तो तेरी अम्माँ लड़ेगी हम लोगों की हँसी अब दबाये न दबी | अम्मां के लड़ने की बात सुनते ही | 1 बड़ी ने फिर जमीन से माथा टेककर कहा -- कुछ भी खाने को चाहिए | | धर्म - जहान कक की कान जे मे आर ओ की हक हे चली गयी। 1 9 ५ मय हे दितनी पूरिया दी, यह तो मैं नहीं कह सकती, पर जब चोके ॥)«/ | | में जाकर देखा तो न डिब्बे में एक भी पूरी थी और न कटोरे में तरकारी। | ९६ 19) 8॥ दूसरे दिन हम लोग सुबह की चाय पीकर उठने ही वाले थे वे बाल गवैये ६ ॥ फिर आ पहुँचे। हमें, कोमल स्वर में सुनाई पड़ा -- 'साँवरिया हमें भूल गयो, सखि, साँवरिया बिंदराबन की कुझगलिन में बाज रही है बासुरिया।। हमें भूल गयो, सखि साँवरिया | । दे :>)1 मेने अपने बच्चों से कहा -- कल तुमने इन्हें खूब पूरियाँ खिलायी थीं न। ४: )॥ अब वे सब फिर आ गये। जैसे उनके लिए ग्रहाँ रोज पूरियाँ धरी हैं ५ ८ “ धरीतो हैं माँ! एक साथ ही बच्चों के मुँह से निकला ओर सबके हाथ (“| एक साथ ही पूरी के डिब्बे की ओर बढ़े 1 रोकते हुए कहा -- ठहरो, ठहरो! रोज-रोज इन्हें पूरियाँ खिलाओगे ६ 1 तो वे दरवाजा ही न छोड़ेंगे। उन्हें चावल या आटा देकर जाने को कह दो । हि /) एक बच्चा बोल उठा -- बेचारे छोटे-छोटे बच्चे; न जाने उनके माँ भी है ०) | ॥ या नहीं। वे भला कहाँ पकायेंगे? बंध | 2४ | />ज। ज्प्र | तु बे




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