सीढियां | SEEDHIYAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
217 KB
कुल पष्ठ :
12
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8/2/2016
अख्तर और रंजी दोनों उन्हें तकने लगे।
बशीर भाई ने सवाल किया, तुम सो गये थे या...?
पूरी तरह सोया भी नहीं था, बस एक झपकी-सी आयी थी।
बशीर भाई सोच में पड़ गये। फिर आहिस्ता से बोले, ख्वाब नहीं था। बशारत (शुभ सूचना की आस घोषणा) हुई
है | 1१4
रंजी खामोशी से उन्हें तकता रहा। उसकी आँखों में मानी की कैंफियत देर से तैर रही थी। अब अचानक खुशी की
चमक लहरायी। लेकिन जल्द ही यह लहर मद्धम पड़ गयी।
और उसकी जगह चिन्ता की कैफियत ने ले ली।
अब के बरस, वह चिन्ताग्रस्त धीमी आवांज में बोला, हमारे इमामबाड़े में बड़े अलम का जुलूस नहीं निकला
था | ऐ॥॥
है 'क्यों? ॥॥॥
बशीर भाई और अख्तर दोनों चिन्तित हो गये।
हमारे खानदान के सब लोग तो याँ पे चले आये थे। बस मेरी माँ जी वाँ रह गयी थीं, उन्होंने कहा था कि मरते दम
तक इमामबाड़ा नहीं छोड़ैँगी। हर साल अकेली मुहर्रम का इन्तंजाम करती थीं और बड़ा अलम उसी शान से
निकलता था।
फिर?
बहुत बूढ़ी हो गयीं थीं वह। मैं पहुँच भी नहीं सका। बस... उसकी आवांज भर्रा गयी। आँखों में ऑसू झलक आये।
बशीर भाई और अख्तर के सिर झुक गये। सैयद उठ के बैठ गया था।
बशीर भाई ने ठंडा साँस लिया।
एक घर में रहते हो और तुमने बताया भी नहीं, अख्तर बहुत देर के बाद बोला।
क्या बताता!
बशीर भाई और अख्तर फिर गुमसुम हो गये। उनके जहन कुछ खाली से हो गये थे।
सैयद के जहन में खिड़की-सी खुल गयी थी और किरन एँधेरे में आड़ा-तिरछा रास्ता बनाती हुई सफर कर रही थी।
मुहररम के दस दिनों और चिहिलुम के कुछ दिनों के अलावा साल्र भर उसमें ताला पड़ा रहता था। अनजान को
जानने की ख्वाहिश जब बहुत जोर करती तो वह चुपके-चुपके दरवाजे पे जाता,किवाड़ों की दरारों में से झाँकता,
वहाँ से कुछ नंजर न आता तो किवाड़ों के जोड़ों पे पैर रख ताला लगी हुई कुंडी पकड़ दरवाजे से ऊपर वाली जाली में
4/12
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