किस्सा यह है कि एक देहाती ने दो अफसरों का कैसे पेट भरा | EK DEHATI NE DO AFSARON KA PET KAISE BHARA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
19
श्रेणी :
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मिखाइल एस० एस० - MIKHAIL S. S.
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक दिन गुजरा, दूसरा दिन गुजरा | इसी बीच देहाती ऐसा होशियार हो गया कि लगा अंजलि
में शोरबा तैयार करने! हमारे अफसरों की-खूब मजे में कटने लगी, मोटे-ताजे हो- गये, तोंद बढ़ने लगी.
और रंग निखर आया | अब वे आपस में बातचीत करते-यहाँ तो हर चीज़ तैयार मिलती है और इसी
बीच पीटर्सबर्ग में हमारी पेंशने हैं कि जमा होती चली जा रही हैं।
“क्या ख्याल है आपका, महानुभाव, यह जो बाबुल की मीनार“ की चर्चा की जाती है, वह
हकीकत है या कोरा मनगढ़न्त किस्सा?” नाश्ते के बाद एक अफसर ने दूसरे से पूछा।
“मेरे ख्याल में तो हकीकृत ही है, महानुभाव! वरना दुनिया में बहुत-सी अलग-अलग भाषाओं
के होने का क्या कारण हो सकता है!”
“तब तो यह भी सही है कि प्रलय हुआ था?”
“खाक प्रलय हुआ था, वरना प्रलय के पहले के जानवरों के अस्तित्व को कैसे स्पष्ट किया जा
सकता है? और फिर “मोस्कोक्स्किये वेदोमोस्ती' लिखता है कि-”
“अब अगर 'मोस्कोव्स्किये वेदोमोस्ती”' की कापी पढ़ डाली जाये, तो कैसा रहे।?”
समाचारपत्र की कापी ढूँढ़ी गयी, दोनों साहब इतमीनान से छाया में जा बैठे और शुरू से आखिर
तक उसे पढ़ गये। उन्होंने मास्को, तूला, पेंजा और रियाजान की दावतों का पूरा विवरण पढ़ा, मगर
इस बार उन्हें उबकायी नहीं आयी!
* बाबुल की मीनार का निर्माण बाइबिल में पायी जानी वाली एक पौराणिक कथा है। इस
कथा का सार यह है कि बाबुल की मीनार के निर्माता इसे इतनी ऊँची बनाना चाहते थे कि वह
आकाश को छू सके । मगर भगवान ने निर्माताओं को दण्ड देते हुए उनकी भाषा ऐसी गड़बड़ा दी
कि वे एक-दूसरे की बात समझने में असमर्थ हो गये ।-सं.
14 /किशशा यह कि एक देहाती ने दो अफसरों का कैसे पेट भश
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