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KHEL by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumarपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिर दूसरी, फिर तीसरी, फिर चौथी। इस तरह चार चुटकी रेत धीरे-धीरे छोड़ कर सुरबाला ने भाड़ के सिर पर अपनी कुटी तैयार कर ली। भाड़ तैयार हो गया। पर पड़ोस का भाड़ जब बालिका ने पूरा-पूरा याद किया, तो पता चला एक कमी रह गई। धुआँ कहाँ से निकलेगा? तनिक सोचकर उसने एक सींक टेढ़ी करके उसमें गाड़ दी | बस ब्रह्माण्ड का सबसे सम्पूर्ण भाड़ और विश्व की सबसे सुन्दर वस्तु तैयार हो गई। वह उस उजड्ड मनोहर को इस अद्भुत कारीगरी का दर्शन करावेगी, पर अभी जरा थोड़ा देख तो और ले। सुरबाला मुह बनाये आँखें स्थिर करके इस भाड़-श्रेष्ठ को देख-देखकर चकित भी हुई और खुश भी। परमात्मा कहाँ विराजते हैं, कोई इस बाला से पूछे, तो वह बताये इस भाड़ के जादू में। मनोहर अपनी '“सूरी-सूरो-सुरी” की याद कर पानी से नाता तोड़ हाथ की लकड़ी को भरपूर जोर से गंगा की धारा में फेंक कर जब मुड़ा तब श्रीसुरबाला देवी एकटक अपनी परमात्मलीला के जादू को बूझने और सुलझाने में लगी हुई थी। मनोहर ने बाला की ओर देखा-श्रीमतती जी बिलकुल अपने भाड़ में भ्धक हुई हैं। उसने जोर से लात मारकर भाड़ का काम तमाम कर [| न जाने क्या किला फतह किया हो, ऐसे गर्व से भरकर बेरहम मनोहर चिल्लाया -''सुर्रो रानी! सुरों रानी खामोश खड़ी थी। उन के मुँह पर जहाँ अभी एक खुशी थी, वहाँ अब एक शून्य फैल गया। रानी के सामने एक स्वर्ग आ खड़ा हुआ था। वह उन्हीं के हाथ का बनाया हुआ था और वह एक व्यक्ति ४८६८02८३ ८2८०८ ०८०६५: ३५०४:८४:८22%




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