झारखण्ड के वैकल्पिक विकास और नवनिर्माण की दिशा | JHARKHAND KE VAIKALPIK VIKAS OR NAVNIRMAN KI DISHA

JHARKHAND KE VAIKALPIK VIKAS OR NAVNIRMAN KI DISHA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhसीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY

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सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झारखंड के लिए प्रस्तावित वैकल्पिक नीति के मुख्य बिंदु . ऐसे तो भारत में आर्थिक नीतियां मुख्यतः संपन्‍न एवं अभिजात्य वर्गों और सत्ता में बैठे हुए उनके दलालों के हित में ब्रायी जाती हैं लेकिन झारखंड में यह और-भी ज्यादा सच है। निम्नलिखित उदाहरणों से झारखंड की मोजूदा आर्थिक नीति को समझने में आसानी होगी। चांडिल में सुवर्णरेखा नदी पर बांध से बने जलाशय में इफरात जल भंडार है | 25 कि.मी. दूर तक फैला हुआ है | लेकिन जलाशय के दोनों बगल की अधिकतर जमीनों पर सिर्फ धान की एक फसल होती है, और वह भी बारिश के भरोसे | अगर जलाशय के पानी का उपयोग उद्दह सिंचाई (लिफ्ट इरिगेशन) द्वारा उन खेतों की सिंचाई के लिए किया जाये तो सैकड़ों गांवों में साल भर. भरपूर फसलें उपजायी जा सकती हैं। इस जलाशय में वैज्ञानिक ढंग से मछलीपालन हो तो सैकड़ों गांवों की आजीविका की गारंटी हो सकती है। लेकिन नहीं, ऐसा नहीं होता है। 20 साल से यह पानी जमा है, पर सरकार का ऐसा कुछ भी करने का इरादा नहीं है | झारखंड के खनिजों का लगभग. मुफ्त में दोहन करके अपनी पूंजी के साम्राज्य का विस्तार कर रहे उद्योगपतियों के हित में यह बांध बनाया गया। अभी टाटा इसी जलाशय के बगल में तिरुलडीह के आसपास एक बड़ा कारखाना बनाने के प्रयास में है। मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा. ने इसके लिए सारी सुविधाएं देने का वादा कर दिया है। और यह बात तय है कि टाटा का कारखाना बनना शुरू होते ही प्रतिदिन लाखों गैलन पानी इस जलाशय से खींचता रहेगा। आखिर यह उसका राइपेरियन अधिकार बन जायेगा, जैसे जमशेदपुर में।..... ः उद्योगों ... इसी तरह झारखंड के अधिकतर बांधों का निर्माण वास्तव में शहरों और | को पानी देने के लिए ही हुआ है, हालांकि सिर्फ प्रचार के उद्देश्य से उनके प्रयोजनों में सिंचाई भी जोड़ दी गयी है। .. द रा झारखंड की जमीन का करीब 30 प्रतिशत भूभाग वनभूमि है। इसमें सघन वन का हिस्सा तो कोई 10-12 प्रतिशत ही होगा। बाकी लगभग -खाली पड़ी वनभूमि पर फलदार पेड़ और अन्य जनोपयोगी पेड़ लगाये जायें तो मात्र 3 से 5 वर्षों के अंदर झारखंड के सभी गांवों को इससे अच्छा-खासा फायदा होने लगेगा। साथ ही अगर सरकार वनभूमि में हजारों तालाब और चेकडैम बनाये तो झारखंड में होने वाली 1400 मि.मी. की औसत वार्षिक वर्षा से मिलने वाले पानी. का एक बड़ा हिस्सा जमीन के ऊपर और अंदर संचित हो जायेगा। यह पानी नमी बनकर वनभूमि के बगल में स्थित गांवों की जमीन में फैलेगी और वहां साल भर किसी न किसी प्रकार की फसल का उत्पादन हो सकेगा | उन तालाबों और चेकडैमों में बड़े पैमाने पर मछली पालन करके लोगों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा के लिए अच्छी व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन नहीं | सरकार ऐसा भी... नहीं करेगी। जमीन ऐसे ही खाली पड़ी रहेगी, और सरकार हर साल हजारों एकड़ वनभूमि खदानों-कारखानों को दान करती रहेगी; क्योंकि सरकार के लिए उनका विकास ही विकास है, गांवों और ग्रामीण जनता का विकास विकास _ नहीं है | के... | हट अंग्रेजों के जमाने से झारखंड क्षेत्र में किसी भी सरकार की प्राथमिकता यहां की जनता के हित की नहीं रही है। अंग्रेजी साम्राज्यवाद और देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हित में यहां नीतियां और कार्यक्रम बनाये जाते रहे हैं। अंग्रेजों ने जो खनिजों और जंगलों को केंद्र की संपत्ति करार दिया, वह नीति आज भी कायम है। सरकार पूंजीपतियों को कौड़ी के मोल खनिजों और वन संपदा का दोहन करने देती है। हम मानते हैं कि खनिजों और वन संपदा पर राज्य के मूल वाशिंदों का अधिकार है | झारखण्ड क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग से खेती की उपेक्षा की नीति अपनायी गयी है। झारखण्ड में सिंचाई का यह हाल है कि झारखण्ड में सबसे अधिक सिंचाई वाले गढ़वा जिले में सिंचाई की मात्रा देश के औसत से भी कम है। अंग्रेजों के जमाने से ही झूठ पर आधारित एक स्पष्ट नीति अपनायी गयी कि झारखंड का इलाका खेती के विकास कें लिए उपयुक्त नहीं है, बल्कि यह उद्योगों के विकास के लिए उपयुक्त है; यहाँ खदान और कारखानों का व्यापक विस्तार करना चाहिए। इस बिना पर यहाँ सिंचाई का विकास नहीं किया गया। . यही नीति आजादी के बाद भी जारी रखी गयी। - कृषि व्यवस्था को चौपंट करके, खेती को अलाभकर बनाकर, ग्रामीण : अर्थ-व्यवस्था की स्वायत्तता को पूरी तरह खतम करके, किसानों को असहाय स्थिति में डालकर सरकार का मुंहताज बना दिया गया। और तरह-तरह की स्कीमों के अंतर्गत एक समय की स्वायत्त ग्रामीण जनता को सरकारी अफसरों-कर्मचारियों, सत्ताधारी दलों के नेताओं और बिचौलियों के सामने भिखारी बना दिया गया है | वैश्वीकरण ने धनी और गरीब के बीच, शहर और गांव के बीच की द्री . और भी ज्यादा बढ़ा दी है। द्रुत शहरीकरण के लिए ग्रामांचल की उपेक्षा की गयी। द्वुत औद्योगीकरण के लिए कृषि में कटौती .की गयी। ग्रामीण गरीब विस्थापित किये गये। द




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