एक चोर की कहानी | EK CHOR KI KAHANI

EK CHOR KI KAHANI by पुस्तक समूह - Pustak Samuhश्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl

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श्रीलाल शुक्ल - Shrilal Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/11/2016 दो-तीन लोगों ने चोर की कमर धोती से बाँध ली और उसका दूसरा सिरा पकड़कर चलने को तैयार हो गए। चोर के खड़े होते ही किसी ने उसके मुँह पर तमाचा मारा और गाल्रियाँ देते हुए कहा, अपना पता बता वरना जान ले ली जाएगी। चोर जमीन पर सर लटकाकर बैठ गया। कुछ नहीं बोला। तब नरायन ने कहा, क्यों उसके पीछे पड़े हो भाइयो! चोर भी आदमी ही है। इसे थाने लिए चलते हैं। वहाँ सब कुछ बता देगा। किसी ने पीछे से कहा, चोर-चोर मौसेरे भाई। नरायन ने घूमकर कहा, क्यों जी, मैं भी चोर हूँ? यह किसकी शामत आई! दो-एक लोग हँसने लगे। बात आई-गई हो गई। वे गाँव के पास आ गए। तब रात के चार बज रहे थे। चोर की कमर धोती से बाँधकर, उसका एक छोर पकड़कर दीना चोकीदार थाने चला। साथ में नरायन और गाँव के दो और आदमी भी चल्ले। चारों में पहले वाला बुड्ढा किसान रास्ता काटने के लिए कहानियाँ सुनाता जा रहा था, तो जुधिष्ठिर ने कहा कि बामन ने हमारे राज में सोने की थाली चुराई है। उसे क्या दंड दिया जाए? तो बिदुर बोले कि महाराज, बामन को दंड नहीं दिया जाता। तो राजा बोले कि इसने चोरी की है तो दंड तो देना ही पड़ेगा। तब बिदुर ने कहा कि महाराज, इसे राजा बलि के पास इंसाफ के लिए भेज दो। जब राजा बलि ने बामन को देखा तो उसे आसन पर बैठाला। ... चौकीदार ने बात काटकर कहा, चोर को आसन पर बैठाला? यह कैसे? बुड़ढा बोला, क्या चोर, क्या साह! आदमी आदमी की बात! राजा ने उसे आसन दिया और पूरा हाल पूछा। पूछा कि आपने चोरी क्‍यों की तो बामन बोला कि चोरी पेट की खातिर की। चौकीदार ने पूछा, तब? तब क्या? बुड्ढा बोला, राजा बलि ने कहा कि राजा युधिष्ठिर को चाहिए कि वे खुद दंड लें। बामन को दंड नहीं होगा। जिस राजा के राज में पेट की खातिर चोरी करनी पड़े वह राजा दो कोौड़ी का है। उसे दंड मिलना चाहिए। राजा बलि ने उठकर...| चौकीदार जी खोलकर हँसा। बोला, वाह रे बाबा, क्‍या इंसाफ बताया है राजा बलि का। राजा विकरमाजीत को मात कर दिया। वे हँसते हुए चलते रहे। चोर भी अपनी पोटली को दबाए पँजों के बल उचकता-सा आगे बढ़ता गया। पूरब की ओर घने काले बादलों के बीच से रोशनी का कुछ-कुछ आभास फूटा। चौकीदार ने धोती का छोर नरायन को देते हुए कहा, तुम लोग यहीं महुवे के नीचे रूक जाओ। मैं दिशा मैदान से फारिग हो लूँ। 4/6




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