अधूरी तस्वीर | ADHURI TASVEER

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सूरज प्रकाश -SURAJ PRAKASH

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 होली खेली गई थी उस सुनसान, उजाड़ पगडंडी पर। थोड़ी देर पहले हँसती-खेलती, अपनी-अपनी उम्मीदों में जीती, मंजिल की तरफ जाती सवारियों को बेरहमी से लाशों के ढेर में बदल दिया गया था। अगले दिन अस्पताल में होश आने पर मुझसे ढेरों सवाल पूछे गए। मैं बेहद आतंकित थी। बदहवास हालत में कुछ भी बताने लायक स्थिति में नहीं थी। जरा हालत सँभलने पर अखबारों में हादसे की अलग-अलग खबरें पढ़ीं। सचमुच कोई भी आदमी इस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहा है। बस यात्रियों की अब तक की हत्याओं से बिलकुल अलग मामला है। सभी अखबारों ने अपने-अपने कयास भिड़ाए हैं। पुलिस हैरान-परेशान है। आखिर यह हुआ कैसे? कुल तीस मौतें, सिख ड्राइवर, मोना कंडक्टर, सारी सवारियाँ, औरतें-बच्चे! कुल सवारियों में सत्रह सिख! सभी को गोलियों से छलनी कर दिया गया। अगर यह सिख आतंकवादियों की करतूत है तो सिखों को भी क्‍यों नहीं बख्शा गया और अगर हिंदुओं ने यह शरारत की है तो तेरह हिंदू क्‍यों मारे गए? पत्रकार, पुलिस और सरकार इस गुत्थी से ज्यादा इस बात से हैरान हैं कि मैं, सिर्फ मैं ही अकेली कैसे बच गई? मेरे शरीर पर एक खरोंच तक नहीं पाई गई है। सबसे अलग गैंगवे में मैं बेहोश पाई गई थी। बाकी सवारियों को उनकी सीटों पर ही चिरनिद्रा में सुला दिया गया। मेरे होश में आने के बाद से लगातार इस बात की कोशिशें जारी हैं कि मैं इन सारे रहस्यों पर से परदा उठारऊँ। बयान करूँ कि सब कुछ कैसे हुआ। आतंकवादी अपने पीछे कोई सुराग नहीं छोड़ गए हैं। सारी उम्मीदें मुझ पर हैं। सबकी उलझनें बिलकुल सही हैं, इंस्पेक्टर साहब। सारे रहस्यों पर से परदा मैं ही हटा सकती हूँ। यह पता चलने पर कि मैं बेजुबान हूँ और कलाकार हूँ, मुझसे अनुरोध किया गया कि मैं अपना बयान लिखकर दूँ और अपनी याददाश्त के सहारे उन निर्मम हत्यारों के चित्र बनाने की कोशिश करूँ। बचपन में एक बहुत अच्छी कहानी पढ़ी थी। एक बड़े नामी कलाकार की प्रबल इच्छा थी कि वह एक ऐसा चित्र बनाए जिसमें दो चेहरे हों। पहला चेहरा दुनिया के सबसे भले, मासूम और अच्छाइयों से भरे आदमी का हो और दूसरा चेहरा दुनिया के सबसे खूँखार, बुरे और खराब आदमी का। वह अपने चित्र के लिए मॉडलों की तल्राश में निकल्न पड़ा। एक जगह उसे एक बहुत ही मासूम, पवित्र-सा और सारी अच्छाइयों के पुंज-सा एक बच्चा मिला। उसे लगा, चित्र के पहले चेहरे के लिए उसे मॉडल मिल गया है। वह उसे अपने साथ स्टूडियो में ले आया, उसे खिलाया, पिलाया और उसकी सारी मासूमियत को अपने रंगों के जरिए कैनवस पर उतार लिया। उसका आधा काम हो गया था। अब उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी, जिसे देखते ही लगे, संसार की सारी खराबियों की खान है यह आदमी। वह भटकता रहा ऐसे खूँखार आदमी की तलाश में। बीसियों बरस बीत गए। वह बूढ़ा हो चला, पर उसे मनमाफिक मॉडल न मिला जिसे वह सामने बिठा कर अपना बरसों से अधूरा पड़ा चित्र पूरा कर सके। वह निराश हो चुका था। तभी उसने एक दिल जेल से एक आदमी को निकलते देखा। कद्दावर, दरिंदगी जिस चेहरे से टपक रही थी। एकदम डरावना। कलाकार को लगा, आज उसकी तलाश पूरी हुई। यही है मेरे अधूरे चित्र का मॉडल। सारी उम्र गुजार दी इसकी खोज में। वह कैद से छूटे उस आदमी को शराब वगैरह का लालच देकर अपने स्टूडियो में ले आया। बड़ी मेहनत की। चित्र पूरा हुआ। कलाकार की खुशी का ठिकाना न था। जीवन का सर्वश्रेष्ठ चित्र जो पूरा हो गया था। तभी उस कैदी ने जोर का ठहाका लगाया। कलाकार ने जब इसका कारण पूछा तो वह बोला, 'यह बच्चे की जो तसवीर है न, जो बरसों पहले आपने बनाई थी, वह भी मेरी ही है।' 4/6




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