नसीबन | NASEEBAN

NASEEBAN by अनवर सुहैल -ANWAR SUHAILपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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80/17/2016 मुसुआ को मूँगफली खाते देख, उस महिला का चार वर्षीय बेटा भी कुछ खाने की जिद करने लगा। महिला ने लाचार होकर पहले तो गोद की बिटिया का मुँह जबरदस्ती दुपट्टे के अंदर करके चुस्त कुर्ते का दामन इस तरह से समेटना चाहा कि बदन भी न उघड़े और बच्ची दूध भी पी ले। इस कोशिश में उसकी दूध-भरी गोरी छातियों की एक झलक नसीबन ने पाई। नसीबन मुस्कुरा उठी। उस महिला ने छाती में बच्ची का मुँह दूँस कर बेटे की तरफ घूर कर देखा। बेटा बदस्तूर मूँगफली खाने की जिद मचाए हुए था। नसीबन से अब चुप न रहा गया। उसने मुसुआ से कहा कि वह मूँगफली के चार दाने उस रोते बच्चे को भी दे दे। मुसुआ मान गया। महिला ने कृतज्ञता प्रकट की। दोनों महिलाएँ मुस्कुरा उठीं। कुछ मामले में मुसुआ बाप पर गया है। गुलजार भी इसी प्रकृति के हैं। भले ही भूखे रह जाएँ लेकिन मेहमान की खिदमत में कोई कमी न करेंगे। बड़े दरियादिल हैं गुलजार ...ईद मित्नने उसे मैके आना पड़ गया, वरना वह मियाँ को एक दिन भी अकेला छोड़ती नहीं। इतनी जिंदगी गुजरने के बाद तो वह मियाँ-वाली हुई है। पहला मियाँ तो बस नाम का मियाँ था। नसीबन को मुँह में कुछ कड़वा कसैला सा महसूस हुआ। पहले शौहर जुम्मन का तसव्वुर उसे भयभीत कर देता। जाने क्या-क्या चाहता था जुम्मन अपनी बीवी से। वह चाहता था कि उसकी नामर्दी की बात किसी भी तरह से समाज में न आने पाए। वह चाहता था कि चाहे जैसे भी हो नसीबन उसके लिए औलादों की लाइन लगा दे। वह चाहता था कि नसीबन उसकी अंधी माँ और नकारा देवर की खिदमत में राई-रत्ती की कमी न करे। ठीक उसी तरह जुम्मन की माँ अपनी बाँझ बहू को रात-दिन ताने मारा करती। बेटे से झूटी शिकायतें करती कि बहू ने ढंग से खाना दिया न पानी... दिन भर बस मुझसे लड़ती रहती है। बाँझ- निपूती राँड़ सब ऐसी ही होती हैं। मेरे बेटे पर 'टोनाहिन' ने जाने कैसा टोना कर दिया है कि यह किसी की सुनता ही नहीं। देवर अलग अपना राग अलापता। वह एक सेठ का डंपर चलाता था। रेत-गिट्टी आदि की ढुलाई में वह डंपर लगा था। रेत-गिट्टी की लोडिंग-अनलोडिंग में गाँव की रेजाएँ और मजदूर लगा करते हैं। उसका चाल-चलन भी ठीक न था। देवर के कई रेजाओं से संबंध थे। वह पूरे समाज में बदनाम हो चुका था। इसीलिए कोई अपनी बेटी उसे देने को तैयार न होता। एक जगह बात चल्र रही थी। लड़की वाले इसलिए झुककर आए थे कि उनकी बेटी में कई दोष थे। लड़की भेंगी और काली-कलूटी थी। बदसूरत कहें तो कोई हर्ज नहीं। उसी समय ऐसा हुआ कि रेजाओं की बस्ती में मार-पीट और शराब पीकर हुड़दंग मचाने के अपराध में देवर को जेल हो गई। लड़की वालों ने खुदा का शुक्र अदा किया कि समय रहते उनकी आँखें खुल गईं। उनकी बेटी बरबाद होने से बच गई। क्या हुआ कि बेटी बदसूरत है किंतु बदकिरदार तो नहीं। देवर अक्सर भौजाई को छेड़ता - 'भड़या से कुछ न हो पाएगा भौजी। एक बार इस बंदे को आजमा कर देखो तो... शर्तिया लड़का होगा। जाने कितनी जगह मैंने आजमाया है। एक मौका खिदमत का हमें भी तो देकर देखो।' 4/9




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