संख्या-जगत में खेल कूद | ROMPING IN NUMBERLAND

ROMPING IN NUMBERLAND by पी० के० श्रीनिवासन - P. K. SHRINIWASANपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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योगेश अग्रवाल - YOGESH AGRAWAL

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनमें से एक को इस खोज को शब्दों में बताने के लिए कहा गया। उसने कहा :; “यदि किसी तिकटी की पहली और तीसरी संख्या को गुणा किया जाए तो गुणनफल बीच की संख्या के वर्ग से एक कम होता हा मुझे उन बच्चों से कुछ ईर्ष्या-सी हुई, क्योंकि मैं स्वयं यह खोज नहीं कर पाया था। चाचाजी ने उन बच्चों की पीठ थपथपाई और सभी छात्रों से पूछा, “बताओ, अब तक जो दो खोजें की गईं, उनमें से किसमें अधिक गहराई है?” सभी जोश से चिल्लाकर बोले, “दूसरी, दूसरी।” चाचाजी ने बताया, “किसी खोज में जितनी गहराई होती है, उतनी ही वह खोज आनन्ददायक होती है।” इस प्रकार चाचाजी ने खोज करने का एक माहौल-सा तैयार कर दिया। फिर चाचाजी ने कहा कि प्राकृतिक संख्याएं कई प्रकार की होती हैं। अब और नई खोजें करने के लिए तुम्हें संख्याओं के इन विभिन्‍न प्रकारों को जानना और पहचानना होगा। चाचाजी ने उन्हें सम और विषम संख्याओं, गुणक (४००) व गुणज (#0७॥0७), वर्ग और घन संख्याओं, तथा अभाज्य (9॥#706) व मिश्र (७०॥००आ७) संख्याओं के बारे में बताया, और उनसे इन सभी के उदाहरण देने को कहा। चाचाजी ने उन्हें समझाया कि कैसे इन संख्याओं को पहचाना जा सकता हे। उन्होंने बच्चों को गणित की शब्दावली के नए शब्दों से परिचित कराया, जैसे अगली संख्या (5५००७५७७०/), पिछली संख्या (91908०७५- 507), सम्बन्धित संख्या (०008७900०710॥6 ॥1७॥1108), इत्यादि। उन्होंने कहा कि इस शब्दावली की जानकारी इस विषय पर बातचीत में बहुत सहायक है। उन्होंने यह भी कहा कि सभी बच्चों को 1 से 100 के बीच इन सभी प्रकार की सभी संख्याओं की सूचियां बनानी चाहिए, और घन संख्याओं के लिए यह सूची 1000 तक जानी चाहिए) जब चाचाजी यह सब कह रहे थे, एक बच्चे ने अपना हाथ




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