लिली | LILI

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श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 उसी तरह खडी दीपक की निष्कम्प शिखा-सी अपने प्रकाश में जल रही थी। क्या अर्थ है, मुझे बता। माता ने बढक़र पूछा। मतलब यह, राजेन को सन्देह हुआ था, मैं विवाह कर लँ:(गी - यह जो पिताजी पक्का कर आये हैं, इसके लिए मैंने कहा था कि मैं हिमालय की तरह अटल हूँ, न कि यह कि मैं राजन के साथ विवाह करूँगी। हम लोग कह चुके थे कि पढाई का अन्त होने पर दूसरी चिन्ता करेंगे। पद्मा उसी तरह खडी सीधे ताकती रही। तू राजेन को प्यार नहीं करती? आँख उठाकर रामेश्वरजी ने पूछा। प्यार? करती हूँ:;। करती है? हाँ, करती हँ:[॥ बस, और क्या? पिता! / ९ पद्मा की आबदार आँखों से आँसुओं के मोती टूटने लगे, जो उसके हृदय की कीमत थे, जिनका मूल्य समझनेवाला वहाँ कोई न था। माता ने ठोढी पर एक उँगली रख रामेश्वरजी की तरफ देखकर कहा, प्यार भी करती है, मानती भी नहीं, अजीब लडक़ी है। चुप रहो। पद्मा की सजल आँखें भौंहों से सट गयीं, विवाह और प्यार एक बात है? विवाह करने से होता है, प्यार आप होता है। कोई किसी को प्यार करता है, तो वह उससे विवाह भी करता है? पिताजी जज साहब को प्यार करते हैं, तो क्या इन्होंने उनसे विवाह भी कर लिया है? रामेश्वरजी हँस पडे। रामेश्वरजी ने शंका की दृष्टि से डॉक्टर से पूछा, क्या देखा आपने डॉक्टर साहब? बुखार बडे ज़ोर का है, अभी तो कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस्म की हालत अच्छी नहीं, पूछने से कोई जवाब भी नहीं देती। कल्न तक अच्छी थी, आज एकाएक इतने जोर का बुखार, कया सबब है? डॉक्टर ने प्रश्न की दृष्टि से रामेश्वरजी की तरफ देखा। रामेश्वरजी पत्नी की तरफ देखने लगे। डाक्टर ने कहा, अच्छा, मैं एक नुस्खा लिखे देता हँ६, इससे जिस्म की हालत अच्छी रहेगी। थोडी-सी बर्फ मँगा लीजिएगा। आइस-बैग तो क्‍यों होगा आपके यहाँ?एक नौकर मेरे साथ भेज दीजिए, मैं दे दँ.गा। इस वक्‍त एक सौ चार डिग्री बुखार है। बर्फ डालकर सिर पर रखिएगा। एक सौ एक तक आ जाय, तब जरूरत नहीं। डॉक्टर चले गये। रामेश्वरजी ने अपनी पत्नी से कहा, यह एक दूसरा फसाद खडा हुआ। न तो कुछ कहते बनता 47




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